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युगप्रधान आ . जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
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सम्यक्त्वधारी श्रावक चैत्यवंदन करता है उसे नमस्कार महामंत्र का जाप करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि :
"अट्टमयं परमिट्टीण सायरं तह गुणिस्सामि ॥ १४ ॥
प्रतिदिन नवकार महामन्त्र का १०८ बार ( एकमाला) जाप करना चाहिये । (पद्य - १४)
जो व्यक्ति नवकार महामन्त्र का एकाग्रचित्त से ध्यान करता है, उसके सर्व उपद्रव शान्त हो जाते हैं। ये नवकार महामन्त्र चिन्तामणिरत्न, कामकुम्भ और कल्पवृक्ष के सदृश है । यह नवकार मंत्र सभी को मनोवांछित फल देनेवाला और मोक्षसुख को देनेवाला है महानिशीथ सूत्र
I
में कहा है- 'एसो पंच नमुक्कारो '
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इन पाँच पदों को नमस्कार करने से, ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मो १ के सभी पाप नाश हो जाते हैं । निर्वाणसुख अर्थात् मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है । ३२
जो आत्मा २५०० (अढ़ी हजार) नवकार मंत्र का जाप करें, वह आत्मा आराधक है । वह ज्ञानावरणीयादि कर्म का क्षय करके तीर्थंकर या गणधर पद को प्राप्त करके सिद्धि को प्राप्त करती है ।
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आचार्य श्री पर्वतिथियों का महत्व बताते है :
उद्दिष्ट- अमावास्य, अष्टमी, चतुर्दशी और पूर्णिमा, द्वितीया, एकादशी, पंचमी इन पर्व तिथियों में बियासना आदि करना चाहिये । (१५)
दशाश्रुतस्कंध भाष्य में कहा है कि:
पर्षण, चातुर्मासिक, पाक्षिक आदि पर्व तिथि जाननी चाहिय, जिनमें सूर्योदय हो । अन्य तिथियाँ नहीं | उन्हीं तिथियों को प्रत्याख्यान जिनेन्द्रपूजा आदि कार्य करना चाहिये । अन्यथा आज्ञा भंग होती है और आज्ञा भंग से मिथ्यात्व आ जाता है ।
३१.
३२.
३३.
जैन दर्शन में आठ कर्म इस प्रकार बताये है।- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नामकर्म, गौत्र कर्म और अन्तराय कर्म ।
" इयं एयस्स अचिंत - चिंतामणी- कप्प-भूयस्स-णं पंचमंगल-महासुयक्खंघस्स सुत्तत्थं पण्णत्तं । "
महानिशीथ सूत्र
- अध्ययन ३/३८, पं. रूपेन्द्रकुमार पगारीया पृ.५६
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