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________________ युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान चैत्य अनायतन कहलाता है । इन अनायतन मंदिरों को स्पष्ट रूप से सूत्रों में सम्यक्त्व नाशक बताया है। २८ सुविहित साधु तथा आगमानुसारी आचरण करनेवाले साधुओं एवं श्रावकों को उन चैत्यों में नहीं जाना चाहिये । जो अपनी उत्सूत्र देशना से तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित धर्माचरण का नाश करते हैं, ऐसे श्रद्धाभ्रष्ट लोगों का दर्शन भी निश्चय से करने योग्य नहीं है। उनकी संगति का त्याग करना चाहिये । क्योंकि वहाँ जाने से सम्यक्त्व का विनाश होता है। (६ से १२) इसके बाद सम्यक्त्व युक्त श्रावक के दैनिक कर्तव्यों का निर्देश करते हैं : (१) सम्यक्त्वयुक्त श्रावक गंगा-यमुना, प्रयाग आदि लौकिक तीर्थ स्थानों में स्नान न करें। क्योंकि वहाँ स्नान करने से अप्काय जीव अर्थात् पानी के जीव तथा छोटे-मोटे जल-जन्तु का नाश होता है। अतः संयम, दान, शील, तप से अन्तरात्मा को शुद्ध करें। सुपात्र में दान दें उससे पुण्य की प्राप्ति होती है। अपात्र को दान देने से पाप में वृद्धि होती है। अतः सुपात्र की पात्रता देखकर दान दें। अब आचार्यश्री यज्ञ के लिये बताते हैं कि:घी, तेल, जव आदि से होम- (हवन)क्रिया न करें, न ही अश्वादि यज्ञ करें। क्योंकि हवन-यज्ञादि करने से त्रस-स्थावर जीवों का नाश होता है। अतः सम्यक्त्वधारी श्रावक को अन्य तीर्थों में स्नान, होम आदि क्रिया करने का निषेध किया है। २८. जत्थ साहाम्मिय व्व बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया। मूलगुण पडिसेवी, अणाययणं तं वियाणहि ॥ ७७९ ॥ जत्थ साहम्मिया सव्वे, भिन्नचित्ता अणारिया उत्तरगुण पडिसेवी, अणायणणं तं वियाणहि ।। ७८० ॥ जत्थ साहम्मिया बहवे, भिन्नचित्ता अणारिया लिंगवेस पडिच्छिन्ना, अणाययणं तं वियाणहि ।। ७८१ ॥ अर्थ :- जहाँ अलग-अलग वृत्तवाले अनार्य प्रायः मूलोत्तर गुणों के प्रतिकूल आचरणवाले एवं अलग-अलग लिंगवेशभूषावाले समानधर्मी साध्वामास रहते हैं, वह अनायतन है। वह स्थान नहीं जाने योग्य शास्त्रों में बताया हैं। (ओघनियुक्ति द्रोणीया वृत्ति-गाथा ७८९, ७८०, ७८१, प्रकाशक-आगमोदय समिति, पृष्ठ सं.२२४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002768
Book TitleJinduttasuri ka Jain Dharma evam Sahitya me Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSmitpragnashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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