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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान
(१) बहुत सारे वस्त्रों को धारण करनेवाला अर्थात् “धोबी'
(२) रंगविरंगी एवं सार्थक मात्रा में कपड़े धारण करनेवाला अर्थात् विदूषक(जोकर)।
सूर ससिणो वि न समा जेसिं जं ते कुणंति अत्थमणं ।
नक्खत्तगया मेसं मीणं मयरं पि भुंजते ।। ८१ ॥ (१) नक्षत्र-तारा (२) नक्षत्र असदाचार को प्राप्त हुए।
यहाँ पर नक्षत्र शब्द के एकाकी प्रयोग पर भी अलग-अलग अर्थ है । अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
फुरियं नक्खत्तेहिं महागहेहिं तओ समुल्लसियं ।
वुड्डी रयणियरेणा वि पाविया पत्तापसरेण ॥ ८७ ॥ नक्खत्तेहिं = नक्षत्रकैः (१) असदाचारी (२) कदाग्रही यहाँ पर नक्षत्र शब्द असदाचारी एवं कदाग्रही इन दो अर्थो में प्रयुक्त किया है।
संहरइ न जो सत्ते गोरीए अप्पए नियमगं । सो कह तब्विवरीएण संभुणा सह लहिज्जुवम्मं ।। १३५
गोरीए = गोर्या (१) गोरी = स्त्री (अर्थात् गौर वर्णवाली)
(२) गोरी = गौरी पार्वती। यहाँ पर गोरी शब्द के भिन्न-भिन्न दो अर्थ होते हैं । अतएव यहाँ पर भी श्लेषालंकार है। रूपक अलंकारः- गुणमणिरोहणगिरिणो, गुणरूपी रत्नों :
अर्थात् रूपक अलंकार । यहाँ पर ऋषभजिनेन्द्र के गुणों की तुलना रत्नों के साथ की गयी है।
उपमा अलंकार:
सिरिथूलभद्दसमणं वंदेहं मत्तगयगमणं ।। १९ ॥
मत्तगजगमनम्
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