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युगप्रधान आ. जिनदत्तसूरिजी का जैन धर्म एवं साहित्य में योगदान यहाँ पर मदोन्मत्त हाथी के समान गति (चाल)वाले श्री स्थूलभद्र मुनि को अर्थात् श्री स्थूलभद्र मुनि की गति की तुलना हाथी की गति से की गयी है । अतएव उपमा अलंकार है।
__ अज्जसमुदं जणयं सिरइ वंदे समद्द गंभीरं ॥२२॥ समुद्र गंभीर - समुद्र के समान गंभीरतावाले श्री आर्य समुद्र।
गम्भीरता में समुद्र के समान अर्थात् समुद्र की गंभीरता (गहराई)के साथ आचार्यमनि की गंभीरता की तुलना के कारण उपमा अलंकार है।
सीहत्ता निक्खंतो सीहत्ताए य विहरिओ जो उ॥१२॥ पराक्रम में सिंह के समान- यहाँ पर सूरिजी के पराक्रम की तुलना सिंह के पराक्रम से की गयी है। अतः उपमा अलंकार है।
पणमामि पायपउमं विहिणा विणएव निच्छउ मं। प्रणमामि पादपद्यम्- कमलरूपी चरण की वन्दना की गयी है। यहाँ पर पैरों को कमलरूपी होने से रूपक अलंकार है।
पोयाण व्व सूरीणं जुगपवराणं पणिवयामि ।। ६१ ॥ पोतानामिव सूरीणां- जहाज (समुद्री जहाज) के समान युग प्रधान' अर्थात् पोत के समान कहने का तात्पर्य यह कि जैसे भव्यप्राणी समुद्र में डूब रहे हैं तो उनकी सहायता जिस प्रकार जहाज के द्वारा होती है। वैसे ही अज्ञानरूपी अंधकार में डूबते लोगों की रक्षा करनेवाले युगप्रधान होते हैं । अतएव पोत एवं युगप्रधान की तुलना होने के कारण उपमा अलंकार है। अतिशयोक्ति अलंकार:
तमहं दसपुव्वधरं धम्मधुराधरणं सेससमविरियं । ३७ ॥ __ अर्थात् दशपूर्व विद्याओं को धारण करने वाले और उस धर्मधुरा को धारण करने में जो शेषनाग से भी कम नहीं है। अर्थात् उनके पराक्रम को शेषनाग के पराक्रम से भी अधिक बताया गया है। अतएव अतिशयोक्ति अलंकार है।
गुणकणमवि परिकहिउंन सक्कई सक्कई वि जेसिं फुडं। जिनके गुणों की तो बात ही नहीं अपितु गुण के लेशमात्र को भी कह सकने में कोई सत्कवि समर्थ नहीं है । इस प्रकार गुणों को इतना बढ़ा दिया गया है । अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।
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