________________
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन नवधा भक्ति से प्रभु को आहार दिया। सती चंदना के सतीत्व में अन्ततः अपना प्रभाव दिखलाया। उसे तीर्थंकर महावीर भगवान को आहार देने का सुयोग मिला और उसके शील की प्रशंसा हुई। नभ से रत्न-वृष्टि हुई -
बज उठे वाद्य, तत्काल तभी, रत्नो की वर्षा हुई वहाँ। उस सेठ धनावह के घर पर सोने की वर्षा हुई वहाँ ॥१
***
कई महिनों से शुद्ध आहार के लिए घूमते हुए आज चंदना के हाथों से आहार ग्रहण करने का सुयोग प्राप्त हुआ। सारा नगर सती चंदना की जय-जयकार से गूंज उठा। लोगों ने उसकी प्रशंसा की और उसे सम्मान दिया।
अभागिन चंदना आज धन्यवाद के पात्र बन गई। उसने तपस्वी महावीर को आहार दिया। उसकी दासता की बेडियाँ कट गई, उसका उद्धार हो गया। सेठानी चंदना सती के पैरों में गिरकर अपने दुर्भावों की क्षमायाचना करने लगी। कवि ने इस वार्तालाप का नाटकीय चित्रण किया है -
चन्दा सती के सेठानी, पग छूकर बोली, क्षमा करो। चंदना लिपट सेठानी से, बोली दीदी मत नयन भरो, तुम बड़ी बहिन मैं छोटी हूँ, मुझको भी पीड़ा हरने दो, मेरी पीड़ा हर ली प्रभुने, मुझको भी पीड़ा हरने दो॥
*** सती चंदना ने मूला सेठानी से मीठी मधुर वाणी में कहा, हे ! दीदी, जो कुछ मिला है तुम्हारे आशीर्वाद से । यह कृपा बेडियों की है कि प्रभुने मेरे घर आँगन में पधारकर आहार लेकर मुझे कृतार्थ किया
जो कुछ भी मुझको मिला, सब आशीर्वाद तुम्हारा है। यह कृपा बेडियों की ही है, जो प्रभुने मुझे दुलारा है। तलघर से आत्म ज्ञान पाया, तलघर से सम्यक् भाव मिले। जिनकी सुगंध जगमें फैली, बन्दीगृह में वे फूल खिले ॥३
***
IM mm
"श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सप्तम् सोपान, पृ.२७२ “वीरायण' : कवि रघुवीर शरण मित्र, सर्ग-१३, पृ.३१९ वही
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org