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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
___सती चंदना मूला माँ को सच्चे ज्ञान का स्वरूप देकर समझाती है- हे माँ ! यह अद्भूत कृपा तुम्हारी है । जीव को सुख-दुःख देने वाला अन्य कोई नहीं है । जैसे इस जीवने पूर्व जन्म में कर्म किये है; वैसे ही फल इसे भोगने पडेंगे । अन्य तो निमित्त मात्र होते हैं। सती चंदना की उदारता एवं प्रभाव के सामने सेठानी द्रवित हो गयी। उसने बारंबार चंदना को सराहा।
वे स्त्रियाँ धन्य है, जिन्होने शील रूपी आभूषण की सुरक्षा की। वास्तव में स्त्री जाती में शील का होना परमावश्यक है। जैसे पुरुष ब्रह्मचर्य के प्रभाव से देवों द्वारा पूज्य हो सकता है, वैसे नारी शील के प्रभाव से त्रैलोक्य वन्द्य हो सकती है। समता मूर्ति चंदना के आदर्श शील ने उसे उँचा उठा दिया। वह देवों द्वारा भी पूज्य हुई और भगवान महावीर की प्रथम शिष्या बनने का सुयोग प्राप्त कर सकी। (ब) माता त्रिशलाः
रानी त्रिशला महाराजा चेटक की बहिन थी, जो स्त्रियों की ६४ कलाओं में निपुण थी, जिसका सरस्वती के समान सौन्दर्य था। वह सर्वगुण संपन्न एवं रूप लावण्य से युक्त थी । नाम था उसका त्रिशला । चेटक राजा ने उसका विवाह कुण्डग्राम के महाराजा सिद्धार्थ के साथ कर दिया।
सिद्धार्थ का जीवन भी गुणों से समलंकृत था। वह भी जाति से क्षत्रिय था। केवल तलवार का धनी एवं पशुबल का पुजारी ही नहीं, बल्कि अहिंसा एवं सत्य का भी उपासक था । वे धर्म और कर्म दोनों कलाओं में पारंगत थे। वे भगवान पार्श्वनाथ के श्रावक (उपासक) थे। अहिंसा, सत्य आदि आत्म शक्तियों पर उनका अटल विश्वास था। राजकुमारी त्रिशला की शादी राजा सिद्धार्थ के साथ हुई । रानी त्रिशला ने कुण्डपुर गाँव में चरण रखते ही प्रकृति उनके अनुकूल ही बन गई, उसी का अद्वितीय चित्र कविने काव्य में खींचा है। जैसे
त्रिशला आई वर्षा आई, प्यासी मिट्टी की बुझी प्यास।
खेतियाँ बहूँ के स्वागत में, गा गा कर करने लगी रास ॥२ . त्रिशला ने जब गऊ ग्रास दिये, गउओं के धन से चुआ दूध । पीते पीते छक गये सभी, भारत में इतना हुआ दूध ॥३
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दिगम्बर के मतानुसार त्रिशला राजा चेटक की लड़की थी। “वीरायण', कवि मित्रजी, “जन्मज्योति", सर्ग-४, पृ.८९
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