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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन सेठ एक दिन किसी गाँव से यात्रा कर लौटा। दोपहर का समय हो चूका था। पद-यात्रा के श्रम से व भूख प्यास से वह अत्यंत कलान्त हो गया था। घर पहुँचते ही वह पैर धोने के लिए बैठा। चंदनबाला पानी लेकर आई। सेठ पैर धोने लगा और वह धूलाने लगी। चंदनबाला के केश सहसा भूमि पर बिखर पड़े। कीचड़ में वे सन न जाये, इस उद्देश्य से सेठने उन्हें उठाया और उसकी पीठ पर रख दिया। झरोखे में बैठी मला की वक्र दृष्टि उस समय चंदनबाला और सेठ पर पड़ी। उसे अपनी आशंका सत्य रूप दिखाई दी। उसके शरीर में आग सी लग गई। उस क्षण से ही उसने चंदनबाला के विरूद्ध षड़यंत्र की योजना आरम्भ कर दी छोड़ती थी उरगी फूफकार चंदना पर था वज्र पहार अरे क्यों में हूँ व्यर्थ हताश करू एसा उपाय हो नाश' *** एक दिन अनायास ही व्यवसाय के लिए सेठजी को बाहर जाना पड़ा। मौका देख मूलाने चंदनबाला को पकड़ा और सिर मुंडनकर, पैरों को बेडी से जकड़ कर उसे तलघर में डाल दिया। घर बन्द कर स्वयं पीहर चली गई। इसी दारूण्य स्थिति का कवि ने काव्यों में सुंदर ढंग से चित्रण किया है : तदनन्तर अबला बाला के, पहनाई कडियाँ हाथों में। फिर क्रूर भाव से बाँध जकड़, धर दिया सूप उन हाथों में ॥२ *** धुंधराले काले केशों को, सेठानी ने कटवा डाला, पैरों में बेड़ी हाथों में हथकड़ियों का बंधन डाला, *** १. "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, सर्ग-४, पृ.१६३ ।। "श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सप्तम् सोपान, पृ.२६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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