SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन वर्ष तक और गृहस्थ जीवन में रहेने को तैयार हो गये। इसमें भी महावीर की चिन्तनधारा का एक निर्मल रूप उजागर होता है। तीव्र वैराग्य-वृत्ति और संसार के प्रति उदासीनता होते हुए भी उन में भातृप्रेम व उदात्त व्यवहार दृष्टि भी थी। वीतरागता के नाम पर बड़ो का अनादर व अवज्ञा करना उन्हें पसन्द नहीं था। साथ ही विचारों की दृढता के नाम पर वे हठवाद को उचिन नहीं समझते थे । समय व परिस्थिति पर उचित निर्णय और व्यावहारिक समझौता करना उनकी सहज, सरल, मधुर जीवन दृष्टि का एक अंग था, यह इस घटना से स्पष्ट होता है। बड़े भैया की आज्ञा को शिरोधार्यकर दो वर्ष पूर्ण होने पर स्वयं नन्दीवर्धन ने वर्धमान के दीक्षा महोत्सव की तैयारी की। *** प्रबंधो में नारीपात्र (अ) सती चन्दनबाला: चंदनबाला महावीर के भिक्षुणी संघ में अग्रगण्य थी। पदसे वह प्रवर्तिनी कहलाती थी। वह राजकन्या थी। उसका समग्र जीवन आरोह-अवरोह से भरा हुआ था। दासी का जीवन भी उसे जीना पड़ा। लोह-श्रृंखलाओं में भी वह आबद्ध रही, पर उसके जीवन का अन्तिम अध्याय एक महान भिक्षुणी संघ की संचारिका के गौरवपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित हुई। सती चंदनबाला चम्पा के राजा दधिवाहन व धारीणी की इकलौती कन्या थी। उसके दो नाम थे-चंदनबाला और वसुमती । लाड़-प्यार में ही उसका शैशव बीता । वह रुप सौंदर्य की साक्षात प्रतिमूर्ति थी । कविने काव्य के अन्तर्गत चंदना के अतीव रमणीय व मनोहारी रुप का संरचना का सुंदर चित्रांकन किया है ज्योति थी मुख की दिव्य ललाम चन्द्र पर घिर आये घनश्याम बहु मादक था उसका रूप भौंह थी तिरछी भव्य अनूपनेत्र थे जैसे खिले कमल ॥' *** १. "तीर्थंकर महावीर" : कवि गुप्तजी, चतुर्थ सर्ग, पृ.१५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy