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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन गोद में सुत को बिठा प्रवीण नृपति सिंहासन पर थे आसीन निकट बेठी माता त्रिशला
दीप ज्यों बाती संग जला-१ राजकुमार वर्धमान की शादी के पश्चात् राजा सिद्धार्थ गृहस्थ जीवन का कर्तव्य पालनपूर्ण करके आत्मसाधना में लग जाते है। कविने माता त्रिशला और राजा सिद्धार्थ के आत्मचिंतम का सुंदर चित्रण काव्य में प्रस्तुत किया है -
अब तो कर्म शक्ति ही विदा हुई कबसे, हाथपाँव भी हिला नहीं अब सकते थे। तब कैसे घाती कर्मो का क्षय होगाकर्म-चक्र से कैसे वह बच सकते थे। २
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इन्हीं विचारों में डूबे राजा रानी, पलंग छोड नीचे धरती पर बैठ गये। नयनों से अविरल जल-धारा बहती थी, ध्यान-मग्न हो, अलग-अलग थे बैठ गये ॥३
*** (ब) नन्दीवर्धन ः
माता त्रिशला के ज्येष्ठ पुत्र का नाम नन्दीवर्धन था। माता पिता का स्वर्गवास हुआ तब वर्धमान अठ्ठाईस वर्ष पूर्ण कर चुके थे। अब घर में पिता के पश्चात् वही वरिष्ठ थे। अतः जब बड़े भाई नन्दीवर्धन के समक्ष महावीर ने अपनी भावना प्रगट की तो नन्दीवर्धन डबडबाई आँखों से उनको निहारने लगे। उसी की करूणापूर्ण स्थिति का सुंदर वर्णन कवियों ने काव्य में किया है -
तीर्थंकर महावीर : कवि गुप्तजी, प्रथम सर्ग, पृ. २६ श्रमण भगवान महावीर : कवि अभयकुमार योधेय, तृतीयसोपान, पृ.१०९ वही, पृ.११०
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