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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रेमी पतिः
राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के प्रेमालाप का अद्वितीय चित्रण कवियों ने काव्य के अन्तर्गत किया है। वे रानी की इच्छाओं को पूर्ण करते थे। राजा अत्यन्त स्नेह से महारानी के स्वप्न की बात सुनते थे। इन सबका प्रेमपूर्ण स्नेहमयी वातावरण का सुंदर चित्रण कवियों ने काव्य में अंकित किया है -
त्रिशला। तुम सोती रही, मैने देखे रुप। सब रातों का चांद था, तेरा रुप अनूप । १
*** नृप समझ गये रानी का मन, लेकर घूमे उपवन-वन में। देखी निसर्ग की छटा मंजु, पुलकित थे अपने तन मन में। नवकुंज निकुंज आमिंद सुवीथि, सुबाग तड़ाग सुकानन में।
प्रेयसि की जैसी अभिलाषा. सब पूर्ण करी सुख पा मनमें ॥२ वास्तसल्यपूर्ण पिताः
___ कवि गुप्तजी, शर्माजी आदि कवियों ने महाकाव्य में वात्सल्यमयी पिता का उत्तम चित्रण प्रस्तुत किया है। जिस समय प्रिया ने प्रियतम से रात्रि में देखे हुए स्वप्न की बात सुनाई जिसे सुनकर राजा का मन पितृत्व से भर गया और उल्लसित होकर नाचने लगे
त्रिशला ने प्रियसे कहे, सारे सोलह स्वप्न ।
नाच उठे सिद्धार्थ सुन, कहा प्राप्त सब रत्न ॥३ कविने पुत्र जन्म के समय की राजा के वात्सल्यपूर्ण भावों का सजीव चित्रण काव्य में चित्रित किया है
नृपवर अतुलित सिद्धार्थ प्रफुल्लित हो होकर । दान दक्षिणा पुण्य कर्म में, जुटे हुये थे सुधि बुधि खोकर ॥४
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“वीरायण" : कवि मित्र, “जन्मज्योति', सर्ग-४, पृ.९४ , भगवान महावीर : कवि शर्माजी, "दिव्य शक्ति अवतरण", सर्ग-३, पृ.२९ वीरायण कवि मित्रजी, “जन्मज्योति', सर्ग-४, पृ.९४ "भगवान महावीर', कवि शर्माजी, सर्ग-४, पृ.३६
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