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ऋषभदेव की गति -
सिद्ध
निर्वाण तिथि
प्रव.द्वा., कार्तिककृष्ण चौदस में कार्तिक
द्वा.
की है। सत्त कृष्ण तीसकी है।
निर्वाण साथी
प्रव. द्वा., आव. नि. सत्त. द्वा. क्रमानुसार १, १ एकाकी
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पूर्वभव का नामसमवायांग, सत्त. द्वा. में प्रभु का पूर्वभव का नाम नंदन दिया है। गर्भापहरण
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
सम. सूत्र के ८३ वें समवाय में, स्थानांग सूत्र के पांचवें स्थान में भी भगवान महावीर के पंच कल्याणकों में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ परिवर्तन का स्पष्ट उल्लेख है । स्थानांगसूत्र के दसवें स्थान में दश आश्चर्य गिनायें है । उनमें गर्भहरण का दूसरा स्थान है भगवान की माता ने १४ स्वप्न देखें । विवाहित
गोशालक भगवान महावीर का शिष्य । माता त्रिशला चेटक की
for थी । राजा सिद्धार्थ के दो
थे । नन्दीवर्धन और वर्धमान ।
पुत्र
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हरि. पु. तिलो. ग्रन्थ में निर्वाण तिथि कार्तिक कृष्ण चौदस की है .
तिलो., ग्रंथ में भगवान अकेले रहे । हरि. पु. में निर्वाणसाथी २३ का वर्णन है तथा उत्त. पु. में प्रभु के १००० निर्वाणसाथी बताया है ।
हरि. पु. में नन्दन है किन्तु उत्त. पु. ग्रंथ में नन्द पूर्व भव का नाम है ।
दिगंबर परम्परा ने गर्भापहरण के प्रकरण को विवादास्पद समझकर मूल से ही छोड़ दिया है । वे गर्भापहरण को स्वीकार नहीं करते । सीधे ही माता त्रिशला को गर्भ में मानते हैं ।
१६ स्वप्न
गोशालक का पार्श्वनाथ परंपरा के मुनि रुप में चित्रण किया है। राजा चेटक की पुत्री थी। राजा सिद्धार्थ के एक मात्र वर्धमान पुत्र था ।
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