________________
७१
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन से हुआ।
या तेला से हुआ। प्रथम पारणा दाता आव. नि., सत्त. द्वार और
उत्तरपुराण पर्व में कूल और समवायांग में प्रथम पारणा
हरिवंशपुराण में बकुल था। दाता बहूल था। प्रथम पारणा स्थल आव.नि., सत्त. द्वारा और
उत्तरपुराणपर्व में कूल ग्राम और सम. के अनुसार प्रथम पारणा
हरिवंशपुराण में कुंड पर प्रथम स्थल कोल्लागग्राम है।
पारणा का स्थल बताया है। छयस्थकाल सत्त. द्वा. में साढे बारह वर्ष,
तिलो. ग्रंथ में बारह वर्ष और हरि. में बारह वर्ष।
उत्त. में बारह वर्ष वर्णित हैं। श्रावकसंख्या प्रव.द्वा., आव.नि.सत्त.
हरी., तिलो. उत्तरपुराणं द्वार में १०००००
आदिग्रन्थों में १४९००० हैं। श्राविका संख्या प्रव. द्वा., सम., सत्त. द्वा.
हरि. पु., तिलो., और उत्त. पु. में ३१८००० हैं।
आदि ग्रंथों में ३००००० हैं। वैक्रियलब्धिधारी प्रव. द्वा., सत्त द्वार में
हरि. पु.तिलो. उत्त.पु.ग्रन्थों में वैक्रियलब्धिधारी ७०० थे।
९०० थे। माता-पिताकी गतिमाता- त्रिशला, देवानंदा।
स्त्री को मुक्ति नहीं त्रिशला- चोथे माहेन्द्र देवलोकमें
मानते हैं। देवानन्दा- सिद्धगति को प्राप्त हुई। पिता-सिद्धार्थ और ऋषभदत्त सिद्धार्थ की गति आचारांग सूत्र में इन दोनों का बारहवें सर्ग में जाने का उल्लेख हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org