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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन शक्ति-परिचयः
एक बार कोई अभिमानी देव उनके साहस की परीक्षा के विचार से किशोररूप धारण कर उनके क्रीडावन में सम्मिल्लित हो गया। खेल में वर्धमान के साथ हार जाने पर नियमानुसार उसे वर्धमान को पीठ पर बैठाकर दोडना था। अतः किशोर रुपधारी देव दोडता हुआ आगे निकल गया और एकांत में उसने अपना विकराल रूप बनाकर वर्धमान को डराना चाहा। देखते ही देखते किशोर ने लम्बा ताड जैसा पिशाच रुप धारण कर लिया। किन्तु वर्धमान उसकी यह करतूत देखकर न धबराये और न विचलित हुए। दृढता के साथ उसकी पीठ पर एक ऐसा मुष्टि प्रहार किया कि देवता दर्द के मारे चीख उठा और गेंद की तरह फूला शरीर दब कर वामन हो गया। उस देवका मिथ्याभिमान चूर-चूर हो गया। देवने बालक महावीर से क्षमा याचना करते हुए कहा “वर्धमान' ! इन्द्र ने जिस प्रकार आपके पराक्रम की प्रशंसा की वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई । वास्तव में आप वीर ही नहीं महावीर है। इस प्रकार महावीर की वीरता, धीरता और सहिष्णुता बचपन से ही अनुपम थी। योवनावस्थाः
___बचपन यौवन की चौखट पर पहुंचता है। पर न उसमें मर्यादाहीन उन्माद है, न भोग लिप्सा है और न विह्वलता है। माता-पिता के आग्रह से शादी करनी पडती है, क्योंकि वे माता-पिता को दुःखित भी नहीं करना चाहते थे। उन्होने गर्भा काल में ही माता के स्नेहाधिक्य को देखकर अभिग्रह कर लिया था कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे, वे दीक्षा ग्रहण नहीं करेंगे। माता-पिता को प्रसन्न रखने के इस अभिग्रह के कारण ही महावीर को विवाह बंधन में बंधना पड़ा। राजकुमारी यशोदा सर्व प्रकार से इस कुल
और वरके योग्य थी। यशोदा ने एक पुत्री को भी जन्म दिया। जिसका नाम प्रियदर्शना रखा गया।
(क) स व्यरंसी द्वन्र्धनान्न, यावन्तावन्महौजसा ।
आहत्य मुष्टिना पृष्ठे, स्वामिना वामनीकृतः। - त्रि.पु.च.१. १२, श्लो.२१७ (ख) . आवश्यक चूर्णि, १ भा. पृ.२४६ दिगम्बर मतानुसार भगवान अविवाहित थे।
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