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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन अनिर्मिष दृष्टि से देखते हुए खड़ी रही। तव गौतमस्वामी ने भगवान से पूछा कि देवानंदा के स्तन में दूध की धारा कैसे फूटी ? इस के उत्तर में भगवान ने कहा कि गौतम यह देवानंदा मेरी सच्ची माता है और मैं इसका पुत्र हूँ।' आचारांग सूत्र में भी भावान महावीर की जीवनी संक्षेप में प्राप्त होती है जिसका कुछ विस्तार कल्पसूत्र में पाया जाता है। इस संक्षिप्त जीवनी से श्वेतांबर मान्यताओं की प्राचीनता और प्रामाणिकता सिद्ध होती है कि भगवान महावीर ब्राह्मणकुंड ग्राम के कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त की पुत्री जालंधर गोत्रीया देवानंदा ब्राह्मणी की कोख में आषाढ शुदी ६ को उत्पन्न हुए थे। फिर देवने ८२ दिन बीत जाने बाद ८३ वे दिन आश्विन शुक्ला त्रयोदशी को क्षत्राणी की कोख में रख दिया । अर्थात् गर्भ परिहरण की घटना प्राचीन प्रमाणों से पुष्ट है। नवमास और सात दिन की गर्भाविधि पूर्ण होने पर राजा सिद्धार्थ के वहाँ रानी त्रिशलादेवी की कुक्षिसे चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (इ.स.पूर्व ५९९) के दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में तेजवान पुत्र रत्न ने जन्म लिया। सिद्धार्थ को इक्ष्वावंशी और गौत्र से काश्यप कहा गया है। कल्पसूत्र और आचारांग में सिद्धार्थ के तीन नाम बताये गये है(१) सिद्धार्थ (२) श्रेयांस और (३) यशस्वी। त्रिशला वासिष्ठ गोत्रीया थी, उनके भी तीन नाम उल्लिखित हैं - (१) त्रिशला, (२) विदेह दिन्ना और (३) प्रियकारिणी । वैशाली के राजा चेटक की बहिन होने से ही इसे विदेह दिन्ना कहा गया है। ३ बाल्यकालः जब से उन्होनें त्रिशला के गर्भ में पदार्पण किया तब से राज्य के खजाने के सोना, चांदी, धन, धान्य आदि समस्त राजकीय साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। फलतः उसका नाम वर्धमान रखा गया। ४ भद्रबाहु ने कल्पसूत्र में आपके तीन नाम बताये हैयथा माता-पिता के द्वारा “वर्धमान' सहज प्राप्त सदबुद्धि के कारण “समण'' अथवा शारीरिक व बौद्धिक शक्ति से तप आदि की साधना में कठिन श्रम करने से "श्रमण'' और परिषहों में निर्भय अचल रहने से देवों द्वारा महावीर नाम रखा गया। ५ arrin x आचारांग सूत्र : श्रुतस्कंध-१, १५ वां भावना नामक अध्ययन कल्पसूत्र, १०५/१०६ सूत्र । आचारांग भावनाध्ययन । दिगम्बर मतानुसार त्रिशला चेटक की पुत्री थी। कल्पसूत्र, सूत्र १०३ वही, १०४ ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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