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________________ ५८ दसवें अधिकार में प्रभु के बाल्य, जीवन यौवन में आकर वैराग्य और दीक्षा, कुल राजा द्वारा भगवान का प्रथम आहार, चंदना के हाथों से आहार लेने पर चंदना का कष्ट दूर होना, घोर तप करते हुए विविध प्रकार के उपसर्गों को सहते हुए केवलज्ञान की प्राप्ति का वर्णन है - माता विलाप : १. २. ३. ४. हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन हष करे क्रीडा बहु सोय, बांधव सजन सुख अति होय । इहि विधि बाल कुमार सुहात, माता आगे बच तुतलात ॥ ' *** परिषह : ५. पुत्र बिछोह ताप अधिकाय, तन मन बेलि गई मुरझाय । रुद्रण करे बहु व्याकुल होय, दुख विलाप जुत विह्वल सोय ॥ २ इन्द्र द्वारा शान्त्वना : भो देवी उर धीरज आन, मेरे वचन सूनो निज कान । तुम सुत तीन जगत भरतार, अद्भूत विक्रम को नहि पार ! दीक्षा कल्याणक : मारग शिर है उत्तम मास, कृष्णपक्ष दशमी तिथि जास । हस्त उत्तरा अन्तर माहि, अपरा हिन वेला तहं आहि ॥ ४ विभिन्न प्रकार के उपसर्गों को सहन करते हुए भगवान को केवलज्ञान प्राप्त हुआ । ग्यारहवें अधिकार में देवों द्वारा भगवान का केवल ज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाने और कुबेर द्वारा रचित समवशरण का वर्णन है । ऋतु ग्रीष्म भानु जे तेजा, गिरि तुंग शिला की सेजा। सो सरवर रह न कीचा, प्रभु ध्यान सुपय तन सींचा ॥५ बारहवें अधिकार में समवशरण में गौतम इन्द्रभूति का आना और सन्देह की निवृत्ति होने पर भक्ति विगलित हृदय से भगवान की स्तुति का वर्णन है । " वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, नवम् अधिकार, श्लो. ११, पृ. ८७ वही, दशम् अधिकार, श्लो. ९४, पृ. १९४ वही, श्लो. ७०, पृ. ११४ वही, श्लो. १३४, पृ. १२१ वहीं, श्लो. १८६, पृ. १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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