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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन ५९ तेरहवें से पन्द्रहवें अधिकार तक गौतम गणधर द्वारा प्रश्न करने पर भगवान द्वारा उत्तर में तत्व निरूपण का दार्शनिक पक्ष प्रस्तुत हुआ है । सोलहवें अधिकार में इन्द्र द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान का विभिन्न देशों में विहार, गौतम गणधर द्वारा श्रेणिक के पूछने पर उनके तीन पूर्व भवों का वर्णन, अन्त में विहार करते हुए भगवान का पावा में निर्वाण, गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति और उनका धर्म विहार, धर्म उपदेश आदि का वर्णन करने के बाद कवि ने अन्त में अपना विस्तृत परिचय दिया है । इस प्रकार महावीर चरित्र का वर्णन कविने परंपरानुसार किया है। जिस प्रकार जैन पुराणकार चारत्र वर्णन के माध्यम से जैन धर्म के विभिन्न सिद्धांतो का प्रतिपादन करने के अवसरों का पुरा उपयोग करते रहे हैं, उसी प्रकार कविने प्रस्तुत ग्रंथ में उपयोग किया है। कवि नवल शाह ने वर्ण्य विषय के अनुकूल विभिन्न छन्दों और अलंकारों का प्रयोग करके छन्द और अलंकारशास्त्रों पर अपने अधिकार और उनके प्रयोग की प्रतिभा का सफल प्रदर्शन किया है। दोहा, छप्पय, चौपाई, सवैया, अडिल्ल, गीतिका, सोरटा, करखा, पद्धरि, चाल, जोगीरासा, कवित्त, त्रिभंगी, चर्चरी छन्दो की कुल संख्या ३८०६ है । कवि कहीं भी अनावश्यक शब्दाङम्बर नहीं दिखाया, बल्कि उनकी कविता का प्रत्येक शब्द सार्थक उपयोगी और भावगर्भित है । इस वर्धमान पुराण ग्रंथ की हस्तलिखित प्रति में लगभग ३५० चित्र भी दिये गये हैं। ये सभी चित्र विषय के संबंधित हैं । इन चित्रों का महत्व इस दृष्टि से अधिक बढ गया है कि ये मौलिक रूप में दिये गये हैं । वास्तव में कवि नवल शाह ने इस वर्धमान पुराण ग्रंथ को लिखकर जैन और जैनेतर समाज को लाभान्वित किया है । *** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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