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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
इत्यादिक बहु करे उपाय, ऋद्धि विक्रिया के परभाय । जिन माता को हर्ष बढाय, करें रंग देवी मन लाय ॥'
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आभूषण पहरै निज सबै, जोति दशौविश फैली तबै । ध्वजा छत्र जुत सरस विमान, छाय रह्यौ नभ मण्डल जान ।। जय जय शब्द करत मन लाय, आये कुण्डलपुर समुदाय। देवी देव विमान अपार, दिश दशहू रूध्यौ पूर सार ।। २
. *** आठवें और नौंवे अधिकार में भगवान के जन्म कल्याणक और बाल्यावस्था का भावपूर्ण सरस वर्णन किया गया है -
सामानिक सब देव अनेक, षोडश स्वर्ग तनें करें टेक। आये सकल महोत्सव काज, अपने अपने वाहन साज ॥ ज्योतिष व्यन्तर और फणिन्द्र, सब परिवार सहित आनन्द। दुन्दुभि शब्द महा ध्वनि करै, सकल देव जै जै उच्चरै । ३
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जन्माभिषेक कियो गिरि शीस, सोसब वर्ण कहो सुर इश। तब बहु हर्ष भयो नृप रानि, अति आनंद महोच्छव ठानि ।। ४
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अद्भुत लीला हरि बहु करी, देखें नर नारी पुर जूरी ।
स्वजन आदि सब पुरजन तहे, आये सुतहि महोच्छव लेह ॥५ बाल्यावस्थाः
खेलै देवन सहित जिनेश, तहां रत्नमय धूलि विशेष । सों निज सिर पर डारै केलि, धूल देय मिथ्याभत बेलि ॥६
*** “वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, सप्तम् अधिकार, श्लो. १९१-१९२, पृ.७४ वही, श्लो. १७८-१७९, पृ.७४ वही, अष्टम् अधिकार, श्लो. १३-१४, पृ.७८ वही, श्लो. ९३, पृ.८३ वही, श्लो.९५, पृ.८३ वही, नवम् अधिकार, श्लो.९, पृ.८९५५
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