SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन इत्यादिक बहु करे उपाय, ऋद्धि विक्रिया के परभाय । जिन माता को हर्ष बढाय, करें रंग देवी मन लाय ॥' ** * आभूषण पहरै निज सबै, जोति दशौविश फैली तबै । ध्वजा छत्र जुत सरस विमान, छाय रह्यौ नभ मण्डल जान ।। जय जय शब्द करत मन लाय, आये कुण्डलपुर समुदाय। देवी देव विमान अपार, दिश दशहू रूध्यौ पूर सार ।। २ . *** आठवें और नौंवे अधिकार में भगवान के जन्म कल्याणक और बाल्यावस्था का भावपूर्ण सरस वर्णन किया गया है - सामानिक सब देव अनेक, षोडश स्वर्ग तनें करें टेक। आये सकल महोत्सव काज, अपने अपने वाहन साज ॥ ज्योतिष व्यन्तर और फणिन्द्र, सब परिवार सहित आनन्द। दुन्दुभि शब्द महा ध्वनि करै, सकल देव जै जै उच्चरै । ३ *** जन्माभिषेक कियो गिरि शीस, सोसब वर्ण कहो सुर इश। तब बहु हर्ष भयो नृप रानि, अति आनंद महोच्छव ठानि ।। ४ *** अद्भुत लीला हरि बहु करी, देखें नर नारी पुर जूरी । स्वजन आदि सब पुरजन तहे, आये सुतहि महोच्छव लेह ॥५ बाल्यावस्थाः खेलै देवन सहित जिनेश, तहां रत्नमय धूलि विशेष । सों निज सिर पर डारै केलि, धूल देय मिथ्याभत बेलि ॥६ *** “वर्धमान पुराण" : कवि नवलशाह, सप्तम् अधिकार, श्लो. १९१-१९२, पृ.७४ वही, श्लो. १७८-१७९, पृ.७४ वही, अष्टम् अधिकार, श्लो. १३-१४, पृ.७८ वही, श्लो. ९३, पृ.८३ वही, श्लो.९५, पृ.८३ वही, नवम् अधिकार, श्लो.९, पृ.८९५५ Iar rm x 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy