________________
५३
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन त्रिशला नंदन महावीर
- कवि हजारीलाल सुकवि हजारीलाल रचित “त्रिशला नंदन महावीर" काव्य प्रसादगुण परिपूर्ण भगवान महावीर का जीवन दर्शन परिचायक है। कविने कल्पना से कम भक्ति एवं श्रद्दा से अधिक इस रचना को शसक्त बनाने का प्रशस्त प्रयत्न किया है। अनेक स्थलों पर ऐसे शब्द चित्र है जो अपनी नवीन कल्पनाओं के प्रतीक है।
प्रस्तुत काव्य में कविने भगवान महावीर के सत्ताईश भव एवं उनकी आदि से अन्त तक जीवनी की संक्षिप्त में क्रमबद्ध पूर्ण की है। काव्य में कविने विविध प्रकार की घटनाओं का सुंदर ढंग से, प्रस्तुतीकरण किया है। भगवान महावीर के बाल चरित्र को देखिए
माँ का पय पान नहीं करते निज हस्त अंगूठा पिलामृत चखते, भर-भर किलकारी रात दिवस केवल मुस्काया ही करते। सेवा को दिक् कुमारियाँ थी प्रभु को स्नान कराती थी, काजल अरू तेल फूलेल लगा नित नये वस्त्र पहनाती थी॥
***
इक दिवस देव हाथी बनकर, प्रभु को डरवाने आता है, नर-नारी भागे पर प्रभुके, हाथों से पकड़ा जाता है। गज सूढ पकड़ बैठाल दिया, उपर सवार हो जाते है, प्रभु की निर्भयता ताकत लख नरनारी अचरच लाते है ॥२
*** कविने भगवान महावीर की दिक्षा के पूर्व का वातावरण का भी अद्वितीय चित्रण अंकित किया है
एरावत हाथी लिए इन्द्र ज्यों ही नगरी में आता है, तब कुंडग्राम की शोभा का वर्णन कुछ कहा न जाता है।
-
२.
"त्रिशलानन्दन महावीर" : कवि हजारीलाल, “बालचरित्र", पृ.३८ वही, पृ.३९ वही, पृ.४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org