________________
५२
१.
२.
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
देवानाओं द्वारा परीक्षा :
उन पर निज रङ्ग चढाने में,
था अब भी विफल अनङ्ग हुआ । सुर भामिनियों के भ्रूभङ्गो
१
से भी प्रभु - ध्यान न भङ्ग हुआ ॥
***
चंदना का आहारदान :
इस प्रकार कविने काव्य में सभी प्रमुख घटनाओं का समावेश करने का प्रयास किया है । जिस प्रकार हमें परम ज्योति महावीर के जीवन में सर्वत्र एक ही रूप वीतरागता के दर्शन होते हैं, उसी प्रकार इस महाकाव्य में भी सर्वत्र एक ही छंद का प्रयोग कविने किया है। प्रत्येक छंद प्रसाद और माधुर्य गुण से युक्त है भाषा सरल-सुबोध है । कहीं कहीं कविने प्रसंगवश अनेक पारिभाषिक शब्दों का भी प्रयोग किया है। कविने ग्रंथ के अंत में परिशिष्ट संख्या १ में २८९ शब्दों का एक संक्षिप्त या पारिभाषिक शब्दकोष भी दे दिया है। इससे सर्व साधारण जनता को अर्थ समझने में सुविधा प्राप्त हो ।
I
वास्तव में सुकवि धन्यकुमारजी ने तीर्थंकर महावीर के विशाल जीवन को शब्दों में उतारा है, जो उनकी उत्तम काव्यकला का ही परिणाम है। उनका महाकाव्य लिखने का मुख्य उद्देश्य है कि अंधकार से ग्रस्त मानव आध्यात्म की परम ज्योति की ओर प्रेरित है । कवि की यह सरल, सरस और सुंदर काव्य रचना जनता के हृदय में धर्म सुधा का सिंचन करे तथा भावियुग में धार्मिक एवं नैतिक चरित्र को आगे बढाने में सक्षम हो। उसी मनोकामना के साथ कविवर धन्यकुमार जैन सुधेशजीने महाकाव्य - "परम ज्योति भगवान महावीर” की रचना की है ।
1
***
Jain Education International
केवल इनता था ध्यान उसे, छह महिने के भूखे है ।
औ मुज- अभागिनी के समीपकेवल ये कोदो रुखे है |
***
“परमज्योतिमहावीर” : कवि सुधेशजी, सर्ग -१६ पृ.४३०
वही, सर्ग - १७ पृ.४४६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org