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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
कवि ने जिनेन्द्र को लेकर इन्द्राणी का निर्गमन का कितना सुंदर चित्रांकन किया है
पश्चात् उन्हें ले सौरि सदन, से बाहर वे सामोद चलीं। कुछ नहीं किसी को ज्ञात हुआ, * वे प्रभु से भर निज गोद चलीं॥
*** देव-परीक्षा-भगवान की निर्भीकता का चित्रण देखिए
अतएवं उत्तर करके उसके, फण पर निर्भय आसीन हुए। जननी की शय्या सम उस पर, क्रीडा करने में लीन हुए।
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महावीर की दीक्षाः
शिर पर के केश लगे उन को, निज पथ के बाधक कष्टक से। इससे उखाड़ कर पञ्चमुष्ठि - से दूर किया निज मस्तक से ॥ ३
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दृष्टिविष विषधरः
पा नहीं सका जय महानाग, उन महावीर पर हिंसा से। पर महावीरने महानागपर जय की प्राप्त अहिंसा से ॥
*** “परमज्योतिमहावीर" : कवि सुधेशजी, सर्ग-७ पृ.२१० वही, सर्ग-९ पृ.२४८ वही, पृ.३६१ वही, सर्ग-१४ पृ.३८०
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