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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन परमज्योति महावीर महाकाव्य की रचना की।
प्रस्तुत काव्य ग्रंथ में कविने दिगम्बर और श्वेतामंबर अनुश्रुतियों के आधार पर केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान महावीर की कठोर साधनाओं, अद्भुत त्याग, अलौकिक तप और असीमित देह दमन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। इस प्रकार बारह वर्ष की तपस्या के बाद जंभिय ग्राम बाहर ऋजुबालिका नदी के तट पर, श्यामक गृहपति के खेत में शालवृक्ष के नीचे, गोदोहन आसन से ध्यान मग्न अवस्था में वैशाख सुदी दशमी के दिन भगवान महावीर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया। यह भी एक आकस्मिक घटना थी कि भगवान महावीर को गोतमबंधुत्रयी-इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति शिष्य रूपमें प्राप्त हुए और इनके ग्यारह प्रमुख शिष्यों में आर्य व्यक्त सुधर्म मंडिक, मौर्यपुत्र, अकंपित , अचलभ्राता, मेतार्य, प्रभास जैसे मेधावी विद्वान शामिल थे।
कविने परम ज्योति महावीर त्रिशला के सोलह स्वप्न, जिनेन्द्र को लेकर इन्द्राणी का निर्गमन, देव परीक्षा, महावीर की दीक्षा, दृष्टिविष, विषधर, देवाङ्गनाओं द्वारा परीक्षा
और चंदना का आहारदान आदि का सुंदर चित्रण काव्य में प्रस्तुत किया है। भगवान महावीर की करूणा का चित्रण कितना हृदय ग्राही है
उनके ही मन की करूणा सी, उनकी यह करूण कहानी है। यह मसि से लेख्य नहीं इसको, लिखता कपि हग का पानी है।
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त्रिशला के सोलह स्वप्न -
हर सुमन एक से एक रुचिकर देखे स्वप्नों की माला में। उसके उपरांत न जागा वह, सौभाग्य किसी नवबाला में ॥२
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१. २.
“परमज्योतिमहावीर" : कवि सुधेशजी, प्रस्तावना पृ.४६ । वही, सर्ग-३ पृ.१०६
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