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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
भगवान के जन्म से नगर परिवार जनों में खुशी की लहर उठना, देव-देवियाँ इन्द्र आदि भगवान को मेरु शिखर पर ले जाना, जन्मोत्सव मनाकर वापिस महल में लाना, नामकरण आदि का वर्णन चतुर्थ सर्ग में किया है। पंचम सर्ग में भगवान की देव द्वारा परीक्षा, परीक्षा में विजयी बनना तथा इन्द्र द्वारा सभा में महावीर का नाम घोषित होने का वर्णन है। षष्ठम् सर्ग में ज्ञानार्जन के लिए पाठशाला जाना, इन्द्र का पृथ्वी पर आकर विविध प्रश्नों को पूछना, भगवान द्वारा उन प्रश्नों का बुद्धिकौशल से उत्तर देना तथा सभा के लोग आश्चर्यचकित हो जाने का वर्णन है -
महावीर ने सब उद्घाटन
किया बताकर सब विश्लेषण। सुन कर जन-जन हए अचम्भित
दिव्य ज्ञान से भाव-समन्वित ॥
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इस सर्ग में भगवान का रानी यशोदा के साथ पाणिग्रहण, मात-पिता के स्वर्गवास बाद दिक्षा का प्रस्ताव, नन्दीवर्धन, भाई की आज्ञा से दो वर्ष घरमें रहना, गृहमें रहते हुए साधुवत् जीवन की पालन करने की चर्चा है। सप्तम सर्ग में भगवान के वर्षीदान आदि का वर्णन है । अष्टम् सर्ग में कविने भगवान के दिक्षोत्सव का सुंदर वर्णन किया है एवं तात्विक चर्चा का भी उद्घाटन किया है
जहाँ न तृष्णा, भूख-प्यास है जहाँ न निंद्रा विस्मय । मोह नहीं, उपसर्ग नहीं है मोक्ष वही है निश्चय ॥२
*** नवम सर्ग में सोमदेव ब्राह्मण को देवदूष्य दान में देना, दशम सर्ग में ग्वालों द्वारा उपसर्ग, ग्यारवें में शूलपाणि यक्ष आदि का उपसर्ग, द्वादश सर्ग में चण्डकौशिकका उद्धार, त्रयोदश में सुदंष्टदेव द्वारा नाव में प्रभु पर उपद्रव, कम्बल, सम्बल देव द्वारा भगवान की रक्षा तथा संगमदेव का विविध रूप बनाकर प्रभु पर उपद्रव करना, ग्वालों द्वारा प्रभु के कानों में कीले ठोंकना, गोशालक द्वारा प्रभु पर तेजोलेश्या छोडना आदि प्रसंगो का सुंदर वर्णन सरल भाषा में किया है। चतुर्दश सर्ग में चंदनबाला का उद्धार,
"जय महावीर" : कवि माणकचन्द्जी , सर्ग-६, पृ.६३ वही, सर्ग-८, पृ.८८
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