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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन महावीर की तरह साधना का उज्ज्वल दीप जलाना है। किन्तु यह कब हो सकता है जब उनके पथानुगामी बनकर उनके सिद्धांतो को श्रद्धापूर्वक अपनावें । कविने ब्रह्मचर्य की महिमा का सार समझाते हुए अपरिग्रहवादी बनने को कहा है। प्रभु की सभा में जाँतिपाँति का कोई भेद नहीं था। सभी समान आसन पर बैठते थे। प्रभु का यही सच्चा उपदेश था कि मानव-मानव भाई है। मानव के बीच व्यर्थ घृणा की खाई मत खोदो । प्रेम की वर्षा करो । जब मानव के हृदय में यह भावना व्याप्त हो जाती है तभी वह सच्चे समाज का, राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। जब विश्व में अहिंसा का झरना बहने लगेगा तो मानव के सब पाप स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे। जिसने अपरिग्रह का मंत्र जीवन में स्वीकारा वही जीवन में सुख व शांति की धारा में लहरायेगा। प्रभु की तरह जन-जन में सभमाव भरो, जन के मन को शुद्ध बनाओ तथा तप और त्याग के घर-घर में जाकर दीप जलाओ। इस प्रकार का वातावरण विश्वमें छा जायेगा तब ही समस्त मानव शांति का अनुभव करेंगे।
भगवान महावीर ने विश्व को अनेकान्तवाद की महान धरोहर प्रदान की है। उसे जीवन में उतारा जाय तो उससे बढकर बौद्धिक अहिंसा की सिद्धिका दूसरा साधन नहीं है, यही कवि का स्पष्ट संदेश है । भगवान महावीर का नाम इस समय यदि किसी सिद्धांत के रूप में पूजा जाता है तो वह अहिंसा है प्रत्येक धर्म की उच्चता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा तत्व की प्रधानता हो। अहिंसा तत्व को यदि किसी ने विकसित किया है तो वे महावीर थे।
वास्तव में कवि ने श्रेष्ठतम काव्य के माध्यम से महावीर काव्य की जीवन घटना, विशेष परिस्थिति का सहज और स्वाभाविक चित्रण अंकित किया है।
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जय महावीर
- माणिकचन्द रामपुरिया भगवान महावीर का जीवन साधना के उस पुजीभूत उन्नत शिखरसा है, जहाँ पहुँचना किसी भी साधारण मनुष्य के लिए अति दुष्कर है, फिर भी कविने उस शिखर की कल्पना ही की है।
कवि ने जय महावीर काव्य में भगवान के तेजोमय जीवन के विभिन्न अंशो का स्पर्श मात्र ही किया है, क्योंकि उस अगाध महासिन्धु को पूर्ण रूप से बांधना असंभव है। जैसे अगाध सागर लहरा रहा है- तट पर खड़े प्राणी अपने पात्रानुसार जलराशि ग्रहण
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