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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन धरा पर भीषण झंझावात प्रबल झोकें करते आघात दिखता था जब जल ही जल धरा के विकल प्राणी सभी विफल || *** समवशरण पंचम सर्ग में भगवान को केवलज्ञान, गौतम इन्द्र के बीच संवाद, की रचना आदि का विवरण दिया है । कविने काव्य में इन्द्र और गौतम का संवाद रूचिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है मैं शिष्य बनूँगा, द्विजराज तुम्हारा, तुम गुरु प्रधान में तुम्हे समर्पित सारा "गुरूदेव शिष्य बोले यह विप्र विवादि क्या नहीं परीक्षा लेंगे यह उन्मादी ॥' २. ४३ ܕ ܙ ܙ सर्ग में कवि गौतम और महावीर के मध्य प्रश्नोत्तर, गणधर गौतम को दिगम्बर मुद्रा धारण करना और गौतमजी के पाँचसो शिष्यों का मुनि चरित्र ग्रहण करना, राजकन्याएं बनना एवं अन्य नर-नारियों का व्रत ग्रहण करना आदि वर्णन किया है । सातवें सर्ग में श्रेणिकराजा का गणधर गौतमस्वामी द्वारा पूर्वजन्म वृतान्त सुनकर दिल में परिताप व ग्लानि उत्पन्न होने आदि का विस्तार से भावानुकूल विषयानुकूल चित्रण किया है। आठवें सर्ग में भगवान महावीर का पावापुरी में आगमन, मोक्षप्राप्ति, परिनिर्वाण, आदि घटनाओं का सुंदर चित्रण हुआ है। जिस समय प्रभु का निर्वाण होता है, उस समय जड़ व चेतन प्रकृति में विलाप का वातावरण छा गया। उसी का शोकमग्न चित्रण प्रस्तुत किया है। उसे पढने पर पाठक का हृदय भी रोने लग जाय । गौतमजी के विलाप का चित्रण भी कविने भावपूर्ण शैली में अंकित किया है। वास्तव में कवि ने अपने काव्य में गागर में सागर का प्रयास किया है वह सफल है। तीर्थंकर महावीर : कवि गुप्तजी, चतुर्थ सर्ग, पृ. १४७. वही, पंचम सर्ग, पृ. २०४. भाषा की दृष्टि से कवि का यह महाकाव्य सफल है। काव्य की भाषा सरल, ओजपूर्ण तथा भावानुगामिनी है। गहन से गहन भावों को मूर्तकर देने में कवि पूर्ण सफल है। काव्य की भाषा कहीं-कहीं क्लिष्ट है, जिसे कई स्थानों में अर्ध स्पष्टता में उलझन " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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