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________________ ४२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तीर्थंकर महावीर' महाकाव्य संपूर्ण दृश्टि से एक सफल कृति है। कविने आठ सर्गों में भगवान महावीर के गर्भ में आने से लेकर उनके परिनिर्वाण तक की विशाल आध्यात्मिक जीवन यात्रा को परंपरा के आलोक में अपनी कल्पना एवं प्रतिभा के द्वारा सुंदर रीति से चित्रित किया है। प्रथम सर्ग में कविने महारानी त्रिशला का स्वप्न दर्शन, राजकुमार वर्धमान का जन्मोत्सव, बाललीलाएँ, आदि का सुंदर सरल भाषा में चित्रण किया है। द्वितीय सर्ग में इर्ष्यावश संगमदेव भगवान की परीक्षा हेतु आकर विविध भयानक रूपों को धारनकर प्रभु को भयभीत करते है। उस समय वर्धमान अपनी शक्ति से देव को परास्त करते है। उसका चित्रण कविने लाक्षणिक शैली में किया है - “फूफकार मारता महाकाल के स्वर में, निर्भय प्रभुने, जा दबा लिया फणवरमें, बन गये एक क्षण में प्रभु कुशल सपेरा।'' *** तृतीय सर्ग में बारह भावनाओं का चिंतन महावीर का संयम धारण करना, केशलुंचन आदि का सुंदर चित्रण है। चतुर्थ सर्ग में विभिन्न स्थानों का भ्रमण, अनशनतप, कठोर साधना, कठिन परिषह सहने, अनेक उपसर्गों, चंदना प्रसंग आदि का चित्रण कविने किया है । शीत, उष्ण वर्षा, आँधी और तूफानों में भी मेरू की भाँति अडिग रहकर भगवानने मौन रहकर किस प्रकार साधना की उसीका चित्रात्मक वर्णन किया है जिससे पाठक वह दृश्य आँखो के सामने सादृश्य होने लगता है - प्रकृति जब होती थी भयभीत किन्तु योगी नहीं विनीत धैर्य का ले कंबल ओढ कि लेत तुफानों से होड॥२ *** तीर्थंकर महावीर : कवि गुप्तजी, द्वितीय सर्ग, पृ.३५. वही , पृ. १४७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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