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________________ ४० हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन की रचना का चित्रात्मक वर्णन कवि ने किया है। भगवानने नारी मुक्ति एवं समाज के नव निर्माण के विषय में जो उपदेश दिए हैं उनका उल्लेख कविने सरल भाषा में समजाया है। “अष्टम् सोपान' में ग्यारह गणधरों का वर्णन हैं। भगवान के दर्शनमात्र से गणधरों के ज्ञान का अहंकार नष्ट होता है, वे मिथ्यामार्ग छोड़कर भगवान के चरणों में दीक्षित होते हैं। चंदनबाला, मेघकुमारमुनि, प्रसन्नचंद्रऋषि, अर्जुनमाली और शालीभद्र आदि सभी का वर्णन किया है । “नवम् सोपान' में भगवान विचरते हुए पावापुरी पहुँचे, वही भगवान की अंतिम देशना हुई। गौतमको तत्वादि का ज्ञान दिया। संघ आदि की उचित व्यवस्था की, अमावस्या की रात्रि को भगवानने देहत्याग किया, गौतम गणधर का विलाप का करूण दृश्य मार्मिक शैली में व्यक्त किया है जान लिया गौतम ने, यह पथ में ही आते। वज्र गिरा माथे पर, क्यों, प्राण नहीं आते ? मोह की रेखा खत्म होते ही गौतम को केवलज्ञान हुआ । अन्त में भगवान की आरती तथा अष्टकर्मो को नष्ट करके सिद्धावस्था को प्राप्त हुए। . काव्य के अन्त में कवि का उद्बोधन है कि अपने युगमें महावीर स्वामी ने असद् प्रवृत्तियों का, कठिनतम् श्रम-साधना द्वारा,परहिार-परिष्कार करने का और मोक्ष प्राप्त करने का जन-जन को संदेश दिया है। उन्होने मानवमूल्यों को प्रस्थापना का उपदेश दिया जिससे जीव बाह्य जड़-प्रकृति की रागमाया से मुक्त होकर आत्मोपलब्धि के लिए सम्प्रेरित होता है। यह संदेश किसी एक युग, एक भू-भाग, एक धर्म-जाति सम्प्रदाय का नहीं, बल्कि सब के लिए, सब जगह के लिए, सब समय के लिए है। वैचारिक दृष्टि से कवि योधेयजी का यह महावीर चरित्र काव्य उच्च काटि का है। महावीर के चरित्र को कविने मानवीय संवेदना से जोड़ा है। *** श्रमण भगवान महावीर : कवि योधेयजी, नवम् सोपान, पृ.३४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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