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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
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भगवान के हृदय में चलनेवाले आत्मचिंतन का बड़ा मनोवैज्ञानिक वर्णन कविने प्रस्तुत किया है। इसी अध्याय में उनका दीक्षित होना, पुष्पवृष्टि की वर्षा, देवदुन्दुभी बजना आदि कविने सुंदर वर्णन किया है। दीक्षा के पश्चात् भगवान को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होना, तथा बड़े भैया नंदीवर्धन की स्थिति, और ब्राह्मण सोमदेव को दान का वर्णन कविने अपने काव्य कौशल से किया है। “पंचम सोपान' में कविने भगवान का वन में प्रवेश होना,जंगली प्राणियों क उपद्रव, तप में लीन होने का वर्णन किया है। जब भगवान साधना की उच्च कोटि पर आरूढ होते हैं उस समय की अनुकूल प्रकृति का सुंदर चित्रण काव्य में अंकित किया है
निकल पड़े तब वर्धमान के अन्तर के स्वर एक और निर्झर था, मधु का फूट पड़ा। टप-टप लगे टपकने, हर सिंगार कुसुम. स्वर-धारा का फव्वारा-सा छूट पड़ा।
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वन में जीवजन्तु से त्रास, ग्वालों की क्रूरता, इन्द्र द्वारा रक्षा होना, शूलपाणियक्ष का उपसर्ग, चण्डकौशिक सर्प का उद्धार, विभिन्न गावों में भ्रमण करते हुए भगवान ने अनेक उपसर्गो को समता के साथ सहन करने का उल्लेख है। “षष्ठम् सोपान" में गोशाला भगवान का शिष्य बनना, विभिन्न स्थानों में विचरण करते हुए भगवान के द्वारा गोशाला की रक्षा । कर्म को खपाने के निमित्त भगवान का अनार्य देश में पधारना और अनेक कठिन से कठिन उपसर्गो का मेरु की भाँति अडिग रहकर सहन करने आदि के भयानक चित्रण कविने प्रस्तुत किये हैं।
___ “सप्तम् सोपान' में संगम देव द्वारा कठिन से कठिन विविध उपसर्गो द्वारा भगवान को पीड़ा पहुँचाना, दुःख से अति पीड़ित चंदनबाला का उद्धार, ग्वालों द्वारा भगवान के कानों में कीले गाढना आदि भयानक उपसर्गो के चित्रण किए हैं। साढे बारह वर्ष तक उत्कृष्ट साधनाकर जृम्भक गाँव में भगवान को केवलज्ञान, देवदुंदुभि बजना, दर्शों दिशाओं में पुष्पों की वर्षा करना, अपापा नगरी में प्रभु की प्रथम देशना, समवशरण
श्रमण भगवान महावीर : कवि योधेयजी, सोपान-५, पृ.१८२.
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