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________________ ३८ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तृतीय सोपान में कविने भगवान की तरुणावस्था का प्रकृति के अनुकूल अलौकिक चित्रण किया है - कुञ्ज-वीथि से निकले तो कलियाँ मुस्काई कुल-वधुओने घूंघट खोल योवन में मदमाती सुंदरिया शरमाई अकुलाई पर होंठ न खोले । १ *** यौवनावस्था को प्राप्त होने पर मस्तिष्क में विविध विचारों का चिन्तन, रानी यशोदा का गुण - सौंदर्य का वर्णन, माता-पिता का अत्याग्रह के कारण उनकी इच्छा पूर्ति के लिए शादी करना आदि वर्णन किया है। शादी के पश्चात् गृहस्थ जीवन का विवरण, वासना और विवेक के बीच चिन्तन, माता-पिता का आत्मचिन्तन तथा समाधिमरण लेकर ध्यानमग्न हो जाना, स्वर्गवास, मंदीवर्धन को चिन्ता होना, महलों में रहकर भी योगी अवस्था, भगवान संसार की विचित्रता पर चिन्तन करते हुए कहते है कि २. ३. कोई इस नश्वर दुःख सुख की माया से, बच सकने का राह खोजकर आगे आए। और मोह के महा भयंकर भंवर जाल से छुटकारा पा सकने का रास्ता बतलाए ॥ २ *** जिस समय भगवान घर छोड़ने का पूर्ण निर्णय कर लेते है उस समय रानी यशोदा का कारुण दृश्य कविने अंकित किया वह वास्तव में कवि की काव्य कौशलता का ही प्रतीक है - टीस जगाने को लाए ? ३ श्रमण भगवान महावीर : कवि योधेयजी, "तरुणावस्था", तृतीय सोपान, पृ. ९३. वहीं, वही, पृ. १२५ पृ. ११५. ऐसे ही जाना था, तजकर तो क्यों मुझको ले आए ? तो क्या मेरे अन्तर्मन में, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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