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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
३७ श्रमण भगवान महावीर चरित्र
- अभयकुमार योधेय “योधेयजी''रचित महावीरजी के प्रस्तुत जीवन-चरित्र में, समग्रतः एक ऐसा दर्शन बिम्ब उभरता है जो सम्प्रेरित करता है कि सांसारिक वस्तुओं का परित्याग करें, मोह-माया-ममता से मुक्त हों, आत्मा की आन्तरिक ऊर्जा और उसके गौरव को प्राप्त करें। यह जीवन चरित्र इंगित करता है कि केवल पोथे पढकर ही सही मंजिल नहीं मिलती, बल्कि लोग-जीवन में घुल मिलकर ही कष्टों को अनुभवों की आग में तप कर ही प्रेम-दया-करूणा-क्षमा-सेवा-श्रम-अहिंसा, मनन आदि पूर्ण साधनात्मक-सकर्मकप्रकृति को साधकर ही जीवन-मोक्ष मिल सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय आडंबर से दूर होकर अहिंसा से ही, मानव-कल्याण हो सकता है। अत: अनेकान्तवाद, सप्तभंगी-नय या स्याद्वाद के सोपानों पर चढकर किसी भी कूट-गुटबन्दी से अलग रहकर ही मनुष्य आत्मानंद प्राप्त कर सकता है। यों ये सब मानवता के वे मूल्य हैं जिनका सीधा संबंध जगत के शिवं-सत्यम्-सुंदरम् से है, जो हर युग के, हर देश के, हर धर्म के मानव की आकांक्षा के केन्द्र और उसकी जीवनोपलब्धि के सार हैं।
कवि “योधेयजी" ने श्रमण भगवान महावीर चरित्र को नव सोपानों में विभाजित किया है। “प्रथम सोपान" में महावीरकालीन परिस्थितियाँ तथा हरिणिगमेषी द्वारा गर्भ परिवर्तन क्रिया को तर्क सहित सिद्ध करना। माता त्रिशला को शुभ स्वप्न दर्शन होना, स्वप्नों का विश्लेषण, जन्मकल्याणक मनाना आदि वर्णन है। “द्वितीय सोपान' में कवि ने सूर के समान भगवान महावीर की बाल-लीला का सुंदर चित्रण दिया है। भगवान की अंगोपांग आदि क्रिया को देखकर माता के हृदय में विविध प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं।
चलाकर छोटे छोटे हाथ
पाँव से सभी खिलौने ठेल। मचल-सा उठा पालने मेंरही माँ, देख पुत्र का खेल ॥
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श्रमण भगवान महावीर : कवि योधेयजी, "बाल-लीला', प्रथम सोपान, पृ.७७
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