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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन दूंगी, उसका ब्याह रचाऊँगी, इस बात पर राजा सिद्धार्थ रानी त्रिशला को प्रत्युत्तर देते हुए कहते है कि
जिसका मन साधू हुआ,
उसे न भाता ब्याह। जिसकी सबक चाह है,
उसे न अपनी चाह ॥
वीरत्रिशला संवाद का कविने अलौकिक वर्णन किया है। कुमारने माँ को संसार के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए समझाया है कि
ब्याह बड़ा जंजाल माँ!
ब्याह बड़ा उत्पात। बड़ो बड़ो को डस गई,
सुंदरता की घात । २ रानी यशोदा प्रियतम वर्धमान कुमार को शादी के विषय में उपालम्भ देती हुई कहती है कि
पहले चाह ब्याह की भर दी,
अब विरक्ति के गीत गा रहे। तन में मन में आग लगाकर,
स्वामी ! तुम को योग भा रहे॥
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“वनपथ" सर्ग में कविने रानी यशोदा का भक्ति रूप, राजकुमार वीर का निर्वेद, भौतिकता का परित्याग कर वन की ओर प्रस्थान, राजगृह चित्रण, भगवान के माता-पिता और संबंधियों को वन पथ से विदा का करूण दृश्य अंकित किया। राजकुमारी यशोदा का भक्ति स्वरूप का चित्रण देखिए
"वीरायन" : कवि मित्रजी, “विरक्ति", सर्ग-९, पृ.२१८. वही, पृ.२२९. वही, पृ.२४८.
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