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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन मैं मौन सब सहती रही १. २. हर आग में हर राग में । १ मरघट बने है वक्ष पर, वहीं, ज्वाला धधकती देह में आँखे बरसती मौन रह, " तालकुमुदनी" सर्ग में रानी त्रिशला और राजा सिद्धार्थ का जन्मोत्सव, यौवनावस्था, परिणय और साथ में संयोग-वियोग का अनोखा चित्रण किया है । " जन्मज्योति” सर्ग में कवि ने सोलह स्वप्नों का वर्णन, जन्मोत्सव, संगीत, शिशु का चमत्कार, शिशुक्रीडा का वर्णन किया है। इस " बालोत्पल" सर्ग में कविने बालजीवन, बालआदर्श, बाल परीक्षा, माता का आश्चर्य, वीर बाल मित्रों के साथ भोजन करना, संगम देवता का बाल परीक्षा हेतु आना, वीर का अनन्त बल दर्शन, संगम का मद चूर तथा बाल वीर की गरिमा आदि का विस्तृत वर्णन किया है । कविने "जन्म जन्म के दीप" सर्ग में वीर भगवान की पूर्व जन्म की कथाएँ, पराजित संगम देव का इन्द्रलोक में आना, इन्द्र द्वारा शंका समाधान, जीवन की विकास दशाएँ, भौतिक और आध्यात्मिक सुखों की उपलब्धियां, धर्माचारण के चमत्कार, सूक्तियाँ तथा बीच बीच में नीतिपरक दो आदि का चित्रण किया है। “प्यास और अंधेरा " सर्ग में कवि ने वैशाली गणराज्य की दशा, आम्रपाली प्रसंग, अन्तर्वेदना से पीड़ित आम्रपाली की आग, संघर्ष, लूंट, अपहरण, सामाजिक प्रहार, सामाजिक और धार्मिक दशा आदि का विस्तृत चित्रण सुंदर ढंग से किया है । " संतापसर्ग” में कविने दुःखी गणतंत्र, व्यथा से क्रान्ति, वैशाली पर आक्रमण, देश की दशा, युद्ध की दशा और चंदना उद्धार आदि का विवरण किया है । " विरक्ति" सर्ग में कविने विवाह वैषम्य, त्रिशला और सिद्धार्थ के साथ वाद-विवाद का सुंदर चित्रण किया है। माता त्रिशला पिता सिद्धार्थ के सामने शादी का प्रस्ताव रखती हुई कहती है कि पतिदेव ! आप बेटे को समजाओ। मैं प्यारे बेटे को वैरागी न होने पृ. ४९. जलती चिताएँ मेह में । *** "वीरायन " : कवि मित्रजी, "पृथ्वी पीड़ा”, द्वितीय सर्ग, Jain Education International For Private & Personal Use Only ३३ पृ. ४८ www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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