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________________ ३२ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन जड़-जीव पुष्प-वर्षा करते हैं। महावीर के जन्म से पूर्व की स्थिति का वर्णन, वर्तमान राजनीति का गद्दार लोगों का तथा तत्कालीन परिस्थितियों का कविने काव्य में सुंदर ढंग से वर्णन किया है जैसे वह कौन आज जिसके मन में छल-कपट नहीं तम भरा नहीं। वह कौन सुखी है इस युग में, जो दुःखी नहीं गम भरा नहीं। *** उनका जीना व्यर्थ हुआ था, जो न डालते डाका। स्वर्ण डकैती से मिलता था, कविता करके फाका ।२ *** कविने इस सर्ग में देश के गौरव का सुंदर चित्रण किया है। इस पुष्प-प्रदीप सर्ग के अन्त में अपनी आत्महीनता तथा नम्रता प्रगट की है। कवि आत्मनिवेदन करते हुए कहते है - न भुलूँ न भटकूँ न अटकूँ दया हो। मुझे हर कुपथ से हटाना हटाना। ** * बहुत रो चूका हूँ, बहुत खो चूका हूँ। बहुत सो चुका हूँ, बहुत बो चुका हूँ॥ दिखा दो मुझे पथ जहाँ तक गया हो। ५ “पृथ्वी पीड़ा” सर्ग में कवि ने भयानक युद्ध की करूण कथा कही हैं। इस धरती पर अनेक भयंकर युद्ध हुए, उस पीड़ा व्यथा की अभिव्यक्ति पृथ्वी माता ने अपनी वाणी द्वारा की है। धरती माता वेदना के कथनों को व्यक्त करती हुई कहती है 4 | Mmx 3 “वीरायन' : कवि मित्रजी, “पुष्प प्रदीप'' सर्ग-१, पृ.२४. वही, पृ.२५. वही, पृ.३४. वही वही, पृ. ३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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