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________________ ३१ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन कविने जहाँ तत्वचिंतन, जैनदर्शन की बातें उठाई है। गणधरवाद के संदर्भ में जो दार्शनिक विवेचन है वह इतना सरल है कि साधारण पाठक भी उसके सारतत्व को ग्रहण कर सकता है । कविश्री की यह विशेषता रही है कि उन्होने सरलतम भाषा का, लोक व्यवहार में प्रचलित शब्दों का प्रयोग कर के सिद्धांत के गहन विषय को भी लोकभोग्य बनाने का प्रयत्न किया है। यह कृति सचमुच भगवान महावीर के पूरे जीवन का आईना है जिस में उनके पूरे व्यक्तित्व को उभारा गया है। जैन धर्म को समजने का सरल ग्रंथ भी है। भक्तिभाव का निचोड़ भी है। हिन्दी साहित्य के चरित्र काव्यों में इसका मूर्धन्य योगदान है। कवि की सत्य निष्ठा यह है कि उन्होने महावीर के निग्रंथ, करपात्री ही दर्शाया है। यह अलग बात है कि यह चित्रों द्वारा उनके दिगंबरत्व को छिपाया गया है। यह आवश्यक नहीं था। अंत में इतना ही कि ऐसी कृतियाँ ही जन-जन तक जैन धर्म को पहुंचाने में सक्षम होगी। *** वीरायन काव्य - कवि रघुवीरशरण “मित्र" कवि द्वारा रचित “वीरायन" एक उच्च कोटि का प्रबंध काव्य है । उन्हों ने काव्य में जीवन के समस्त अशिव का हरण करने के लिए शिव से प्रार्थना की है। इस काव्य में कवि ने मानव-जीवन की दरिद्रता, व्यथा और शोषण का स्पष्ट उल्लेख दिया है। तथा शिव से अपनी तुलना करता हआ मानवता के उद्धार के लिए उनका आहवान करता हैं । सारांश यही है कि “मित्रजीने''शिव विषयक “वीरायन'' काव्य में मानवतावादी एवं राष्ट्रीय भावना का अत्यंत मार्मिक तथा ओजपूर्ण भाषा में चित्रण किया है। "पुष्प प्रदीप' सर्ग के प्रारंभ में भगवान महावीर की महिमा गायी है, पूज्य तीर्थंकर की पूजा की है, कैवल्य की आरती उतारी है। सर्वशक्ति संपन्न के स्यादवाद को सजाया है। समाज को विविध भावनाओं के पुष्प अर्पित किए है। कवि भावाभिव्यक्ति करते हुए कहते है कि मैं वहाँ वहाँ गया जहाँ जहाँ वीर भगवान के चरण गये थे। उन पहाडियों पर चढा जिन पर लोक भगवान की धूलि चंदन है । धन्य है वह धरती जो ज्ञानेश्वर की गरिमा से गौरवान्वित है । पूज्य है वे स्थान जहाँ मोक्षेशवर पर सुर-असुर Jain Education International For Private & Personal Use Only Fo www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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