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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
इसी समवशरण में प्रभु द्वारा अनेक प्रश्नों के संशयों के निवारण किए गये हैं। ये पश्नोत्तर ही जैन दर्शन के प्राण हैं। प्रश्न कर्ताओं में राजा श्रेणिक-बिम्बसार प्रमुख है। इन्हीं समवशरण में जैन दर्शन के चार निक्षेपे, सप्तनय, सप्तभंगी आदि का ज्ञान-दर्शन का मौलिक ज्ञान विश्व को प्राप्त हुआ।
भ. महावीर ने चंदनबाला को दीक्षा देकर श्रमणी संघ की स्थापना का क्रांतिकारी कार्य किया। नारी समानता का यह प्रथम शंखनाद था।
____ महावीर की देशना या उपदेश लगभग ३० वर्षों तक इस भारतभूमि को प्राप्त होते रहे। प्रभुने बारह व्रतों और बारह तप का निर्देश देकर संयम का महामंत्र दिया ये ही संसार से मुक्त होने का रामबाण इलाज है। संसार में परस्पर प्रेम बढे और मोह का त्याग हो अतः अपरिग्रहव्रत पर विशेष जोर दिया। समाज की एकता और विश्वशांति के लिए यह अपरिग्रह धारण करना आवश्यक है। समता ही मानव मात्र के प्रति प्रेम का उपाय है। इसी में परस्पर के प्रति करूणा, दया, क्षमा पनपते हैं। अपरिग्रह से ही अत्याचार रोके जा सकते हैं। प्रभु की इस अहिंसामयी वाणी से प्रभावित असंख्य लोग राजामहाराजा उनके शिष्य बने।
वैशाली कौसाम्बी कौशल, विदेह आदि प्रदेशों में उनका विहार हुआ और धर्म प्रभावना का प्रसार होता गया।
एक बार गौतमगणधर के पूछने पर प्रभु पंचमकाल (वर्तमानकाल)की स्थिति की भविष्यवाणी करते हुए काल के प्रभाव का वर्णन करते हैं कि इस काल में विकृतियाँ बढेगी । दक्षिण दिशा में हा-हाकार फेलेगा। वर्षा आदि ऋतुएँ अनियमित होगी। अकाल, अतिवर्षा के तांडव होगे। स्वच्छंदता जनमानस को विकृत करेगी । व्याधियाँ फैलेगी, पर्यावरण में असंतुलन होगा, शक्तिशाली शक्तिहीन होने लगेंगे, स्वार्थ, व्यभिचार. अविवेकीपन बढेगा, राजा-प्रजा सी मर्यादायें टूटेगी, द्वन्द्व होगा, छल, कपट बढेगा गुरु की महिमा घटेगी वधर्म पर शंकाएँ की जायेगी। पश्चात् छठे आरे में यह दुःख और भी बढेगा। प्रभुने अपने त्रिकाल ज्ञान द्वारा यह भविष्य बताया । और, सच भी है आज हम वह सब साक्षात् देख और भोग रहे हैं।
इस प्रकार ७२ वर्ष की आयु पूर्ण कर कार्तिक मास की अमावस्या की पिछली रात वे इस नश्वर देह को त्यागकर देहातीत बन गये । शेषचार अघातियाँ कर्मों का क्षयकर केवली पद पर आसीन हुए।
किंचित मोह से व्यथित गौतम गणधर भी ज्ञान का पथ पाकर केवल ज्ञानी
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