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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन 1 प्रकाशित हुई थी । आचार्य श्री जैन साधु हैं, विद्वान कवि होने के कारण उन्होने अपनी कवित्व शक्ति का प्रयोग आध्यात्म चिंतन एवं भगवद् भक्ति के प्रचार प्रसार के लिए किया। श्री मदनलाल जोशी ने अपने संपादकीय में सच ही लिखा है कि 'प्रस्तुत काव्य के माध्यम से भगवान महावीर का त्याग तप एवं साधना में लीन आदर्श जीवन प्रस्तुत र जहाँ भौतिकवादी इस युग के समक्ष महावीर की अहिंसा, महावीर के सत्य एवं उनके अस्तेय ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह आदि मौलिक एवं शाश्वत सिद्धांतो की उपयोगिता के साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति का कार्य किया, यहीं हिन्दी साहित्य को भी संपन्न एवं समवर्धनशील बनाने का प्रशंसनीय कार्य किया है।' जैन मुनियों ने मात्र आत्मसाधना ही नहीं कि है, अपितु उत्तम साहित्य की मौलिक रचना की है। प्रायः सभी विषयों पर ज्ञानवर्धक साहित्य की रचना वे हजारों वर्षो से करते आ रहे हैं। संस्कृत, प्राकृतिक अपभ्रंश की साहित्य सम्पदा से जैन साहित्य ही नहीं भारतीय भाषाओं का साहित्य भी समृद्ध हुआ है। संस्कृत के स्त्रोत साहित्य को देखें तो जैन स्त्रोत साहित्य सब से अधिक समृद्ध हैं । २२ वर्तमान युग में जनभाषा हिन्दी में भी उत्तम काव्य रचनायें इन साधकों ने प्रस्तुत की हैं। वर्तमान युग में अनेक जैन मुनि गद्य-पद्यमय रचनाओं का सृजन कर रहे हैं जिन में आचार्य विद्यासागर, आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ, नानालाल महाराज, जवाहरमुनि, मधुकरमुनि, अमरमुनि, आदि अनेक संत हैं, इन्हीं की ज्योर्तिमय परंपरा में विजय विद्याचन्द्र सूरीजी का भी स्थान है। उनकी अन्य प्रबंध रचनाओं में दशावतारी महाकाव्य, शिवादेवी नन्दन काव्य हैं और यह चरम तीर्थंकर महावीर उनका चरित्र काव्य है। जैन मुनियों द्वारा प्रस्तुत साहित्य की विशेषता यह है कि उन्होने उत्तम चरित्रों का आलेखन कर जन समाज को उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी कृतियों धार्मिक से अधिक चरित्र निर्माण की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण हैं । पण्डित हीरालाल शास्त्री ने लिखा है- उदियमान समाज के सामने नवीन आयामों, नवीन वैज्ञानिक विश्लेषणों से युक्त तर्कबद्ध धार्मिक पुष्टियों एवं मान्यताओं को रखना आवश्यक है, जिसके चिंतन की दिशा में युवा मानस आत्मचिंतन करता रहें तथा अपनी परंपरागत सांस्कृतिक धरोहर को विशेष सँवारने, जीवित रखने में बौद्धिक एवं वैचारिक पृष्टि प्रदान करता रहें। ..शास्त्रतत्व चिंतन जैसे शुष्क विषय को लोकप्रति तथा सरल सरस ढंग से प्रस्तुत करने का विधि वैचित्रय है पद्य एवं काव्य । सामान्यतः धर्म और उसके सिद्धांतों की चर्चा शुष्क और नीरस मानी जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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