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________________ १७ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन ऐसे उदात्त भावों से परिपूरित कविवर पं. अनूप शर्मा की यह अनुपम कृति 'वर्धमान महाकाव्य' मनुष्य मात्र के जीवन के उन्नयन हेतु पठनीय, माननीय और आचरणीय है। * * * भगवान महावीर ( महाकाव्य) रचयिता - कवि रामकृष्ण शर्मा कवि शर्माजी द्वारा रचित प्रस्तुत भगवान महावीर' काव्य हिन्दी साहित्य में रचित श्रेष्ठ महाकाव्य है। इसमें सभी तत्वों का समावेश हो जाता है। उदात्त कथानक, उदात्त चरित्र, उदात्त भाव, उदात्त कार्य और उदात्त शैली आदि लक्षणों से युक्त यह महाकाव्य है। भगवान महावीर'महाकाव्य प्रोढ़तम काव्य-रचना का सूचक है। यह भगवान महावीर काव्य इक्कीस सर्गों में बाँटा हुआ है। प्रत्येक सर्ग में एक रस और एक छन्द का निरुपण किया है। सर्ग के अन्त में छन्द परिवर्तन है और आगामी सर्ग का संकेत भी किया है। प्रत्येक सर्ग के अन्त में कुछ न कुछ संबोधन के रूपमें निरूपण है। यह कवि की विशेषता है। जब मैने ग्रंथ के पृष्ठ पर दृष्टि डाली तो उसमें बड़े अक्षरो में यही लिखा हुआ था कि “राष्ट्रीय एकता, अखण्डता एवं विश्व-शान्ति के लिए समर्पित।" उनके हृदय मे राष्ट्र के प्रति प्रेम फूट फूट भरा है जो इस ग्रन्थ से परिलक्षित होता है। उषाकालीन प्रभात से कवि ने काव्य का प्रारंभ किया है। महाकाव्य के समस्त गुणों का निर्वाह शर्माजी के काव्यमें निहित है। भगवान महावीर काव्य सत्यं शिवं सुंदरमं की सूक्ति से युक्त है। कवि अपने उद्गारों को व्यक्त करते हुए कहते है कि इस विश्व में विविध प्रकार के धर्म व्याप्त हैं। किन्तु सभी धर्मो का सिद्धांत एक ही है। चाहे जैन हो या हिन्दू हो, या मुस्लीम, शिख, पारसी हो इश्वर तो एक ही है। सभी संप्रदाय मिलकर अहिंसा का झंडा लहरा कर विश्व में शान्ति का दीप जलायें। महावीर के मार्ग पर चलकर वसुन्धरा को स्वर्ग बनाये। इसी बात का कवि काव्य के माध्यम से जगत को उदबोधन देना चाहते कविने सर्ग के आरंभ में भारत देश की परिस्थितियों का वर्णन किया है। तत्पश्चात कविने सेवक रूप बनकर काव्य की रचना करना प्रारंभ किया है । लघुता चरण करने से ही कार्य की सिद्धि होती है। कविने काव्य का प्रारंभ मंगलाचरण से किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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