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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
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काव्य में विशेष महत्व की घटना भगवान का विवाह और कौटुंम्बिक स्थिति है । 'वर्धमान' के लेखक ने श्वेतांबर और दिगम्बर मान्यताओं में समन्वय उपस्थित करने का प्रयत्न किया है । कवि ने भगवान के विवाह का आध्यात्मिक रूप प्रस्तुत किया है और श्वेतांबर तथा दिगम्बर आम्नाय की मान्यताओं में सामंजस्य स्थापित किया है । वर्धमान काव्य का यद्यपि ध्यान से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि कविने दिगम्बर और श्वेताम्बर आम्नाय में ही नहीं, जैन धर्म और ब्राह्मण धर्म में भी सामञ्जस्य स्थापन
प्रयत्न किया है । कवि स्वयं ब्राह्मण है । उन्होने अपनी ब्राह्मणत्व की मान्यताओं को भी इस काव्य में लाने का प्रयत्न किया है । वास्तव में भगवान महावीर के जीवन में ही सच्चे ब्राह्मण को आदर स्थान प्राप्त हुआ है।
दिगम्बर संप्रदाय भगवान महावीर को आवाहित मानता है, परंतु श्वेतांबर संप्रदाय उनको विवाहित मानता है । श्री भगवान के मोक्षगामी होने के बहुत वर्ष के अनन्तर विदेह देशमें घोर अकाल पड़ा था । फलतः उनके अनुयायी, जो जीवित बच सके, दक्षिण की ओर चले गये । अनुयायियों के तितर-बितर हो जाने के कारण बहुत सी धार्मिक सामग्री नष्ट भ्रष्ट हो गयी तथा उनके जीवन वृत्तान्त का बहुत कुछ भाग लुप्त हो गया । अतएव, ऐतिहासिक आधार पर उनकी जीवनी का लिखना असंभव हो गया । कहा जाता है कि उनकी पत्नी का नाम यशोदा तथा कन्या का प्रियदर्शना था । कुछ हो, विवाह होने व न होने से उनकी वैयक्तित महत्ता पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता । यह ग्रंथ सांप्रदायिक दृष्टि-कोण से नहीं लिखा गया है, अतः लेखक का क्या मत है, यह जाना नहीं जा सकता। यों तो लेखक ने मुक्तिदारा का पति मानकर भगवान की पूजा-प्रशंसा की है।
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" वर्धमान काव्य" शान्त रस से परिपूर्ण वैराग्य और भक्तिपरक है । १६ वर्ष की अल्पावस्था में ही महावीर की वैराग्य भावना प्रबल हो जाती है। प्राकृतिक उपादन भी वैराग्य प्रेरक होते है
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मनुष्य का जीवन है वसन्त सा । हिमर्तु प्रारंभ निदाघ अन्त में । १
“वर्धमान काव्य" के १३ वें सर्ग में वैराग्य को परिपुष्ट करनेवाली अनित्य,
" वर्धमान' : कवि अनूप शर्मा "आप" पृ.११
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