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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
वर्णित रहे हैं । निर्वाण प्राप्तिसे पूर्व उनका सगुण स्वरूप और जन्म मरण के बंधन से छूटने पर उनका सिद्ध स्वरूप निर्गुण स्वरूप है ।
V
वर्धमान महाकाव्य के सबंध में मुख्य विचारणीय बात यह है कि ग्रन्थ न तो इतिहास है न जीवनी | यदि आप भगवान महावीर की जीवन सबंधी समस्त घटनाओं का और तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों का क्रमवार इतिहास इस ग्रंथ में खोजना चाहेंगे तो निराश होना पडेगा । यह तो महाकाव्य है, जिस में कविने भगवान के जीवन और व्यक्तित्व को फलक बनाकर कल्पना की तूलिका चलाई है। भगवान महावीर जैन धर्म के उन्नायक अन्तिम तीर्थंकर थे, उनके पांच नाम थे, गुणा - वीर, अतिवर, महावीर, सम्मति और वर्धमान । प्रस्तुत काव्य के शीर्षक के लिए वर्धमान नाम ही उपयुक्त समझा गया। दूसरी और भगवान महावीर का वर्धमान नाम इतना प्रचलित है कि भगवान की विहार और उपदेश भूमिका एक खंड बंगाल में इस नाम से ही ( वर्धमान ) प्रसिद्ध है ।
कवि श्री अनूप शर्मा ने अपने इस वर्धमान का काव्य में महाकाव्योचित सभी तत्वों- कथा, प्रबंध, इतिहास, प्रसिद्ध कथा नायक, प्रकृति वर्णन, सौन्दर्य निरूपण, पद - लालित्य, अर्थ गाम्भीर्य, रस-निर्झर, कलाविधान आदि में काव्य कुशलता का उचित निर्वाह किया है। पदे पदे रूपक और उपमा अंलकारो की छटा दर्शनीय है । साक्षात् सरस्वती का प्रतीक संपूर्ण वर्धमान काव्य महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ की राज सभा के समान लगता है।
कविवर ने वर्धमान काव्य के अन्तर्गत प्रथम सर्ग में महाराजा सिद्धार्थ का यश प्रताप और माता त्रिशला रानी रूप- गुण सौंदर्य का अद्वितीय वर्णन किया है । माता त्रिशला के रूप सौंदर्य वर्णन में कवि - कर्म की शालीनता देखते ही बनती है । माता त्रिशला साक्षात् कल्पवल्लरी है -
सुपुष्पिता दन्तप्रभा प्रभाव से, नृपालिका पल्लविता सुपाणि से। सुकेशिनी मेचक भृंग यथ से, अनल्पधी शोभित कल्पवल्लरी ॥ १
" वर्द्धमान" कवि अनूप शर्मा प्रथम सर्ग, पद सं. ५९, पृ.५०.
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