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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन जीवन के विभिन्न व्यापारों और परिस्थियों का वर्णन विस्तार पूर्वक हुआ है । समग्र युगजीवन का वर्णन इन्हीं के द्वारा संभव हुआ है। रस और भाव-व्यंजना का विवेचन करते हुए इन कवियों ने सभी रसों का स्वाभाविक निरूपण किया है। इन में शांतरस प्रधान है । साथ ही श्रृंगार, वीर आदि सभी स्वाभाविक रूप से वर्णित होते गये हैं। शैली गरिमामयी और गंभीर है। छंदो का रम्य प्रयोग अपेक्षित है। कवियों ने कहीं छन्दो कहीं अछन्दस प्रयोग भी किया है । अलंकारो को सभी आचार्यो समान महत्व दिया है, जो इन महाकाव्यों की भी शोभा बन गये हैं। भाषा भी पात्रो के अनुकूल गरिमामयी और गंभीर है। कवियों ने प्रांजल तत्सम और बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया हैं। *** . वर्धमान महाकाव्य रचयिता - महाकवि अनूप शर्मा कविवर पं. अनूप शर्मा का “वर्धमान महाकाव्य" तीर्थंकर महावीर के समग्र जीवन एवं दर्शन को चित्रित करन वाला खड़ी-बोली (आधुनिक हिन्दी) का प्रथम महाकाव्य है जो सं. २००७ में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ था। कुल १७ सर्गो में विभक्त एवं १९९७ चतुष्पदी छंदो में रंचित “वर्धमान महाकाव्य'प्रधानतः भक्ति एवं वैराग्य का काव्य है, जो खड़ी बोली के महाकवि पं. श्री अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध'के प्रियप्रवास महाकाव्य एवं स्वयं श्री अनूप शर्मा के सिद्धार्थ काव्य के अनुरूप तत्सम शब्दावली से युक्त छंदो में रचित हैं। संपूर्ण “वर्धमान काव्य"वंशस्थ छंद में लिखा गया है, पर घटना परिवर्तन में कहीं-कहीं मालिनी और द्रत विलम्बित छंदो का भी प्रयोग किया गया है, जब कि उपसंहार शिखरिणि छन्द में है। प्रिय-प्रवास साकेत, कामायनी, यशोधरी, सिद्धार्थ, बुद्ध चरित आदि आधुनिक महाकाव्यों में आलोच्य “वर्धमान महाकाव्य' भाव एवं कलाविधान दोनों ही दृष्टियों से उल्लेखनीय ___ भारत की सांस्कृतिक परंपरा में महान आत्माओं का गुणानुवाद एक महत्वपूर्ण तत्व रहा है। कवियों ने अपने आराध्य का गुण-गीन केभी आत्मनिवेदन के रूप में किया है तो कभी चरित नायक के रूप में उसकी महानता व्यंजित की है। वाल्मीकि, कालीदास, भवभूति, सूर, तुलसी, मीरां, पुष्पदंत, स्वयंभू, सकलकीर्ति, ब्र. जिनदास, शुभचंद्र, धानतराय, दौलतराम, नवलराम आदि कवियों ने अपने उपास्य की सगुण एवं निर्गुण दोनों प्रकार से भक्ति की है । महावीर तीर्थंकर और सिद्ध दोनों ही रूपों में काव्यों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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