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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन घाटों का पुनरुद्धार इन्होने किया। श्रमणों की प्राचीन साधना श्रम, शांति और संयम की थी। महावीर ने भी इसी साधना मार्ग को गतिशील बनाया। निश्चय ही महावीर धर्म प्रवर्तक ही नहीं, अपितु महान लोकनायक धर्मनायक क्रान्तिकारी सुधारक, सच्चे पथप्रदर्शक और विश्व-बंधुत्व के प्रतीक थे। उनमें अलौकिक साहस, सुमेरु तुल्य अविचल दृढता, सागरोपम गंभीरता एवं अद्भूत सहनशीलता विद्यमान थी। उन्होंने रूढिवाद, पाखण्ड, मिथ्याभिमान और वर्ण भेद के अंधकार पूर्ण गंभीर गर्त में गिरती हुई मानवता को उठाने में अथक प्रयास किया। इस प्रकार इस युग की तीर्थंकर परंपरा की अंतिम कडी भगवान महावीर हैं। महावीर ने जन-जीवन को उन्नत किया ही, साथ ही उन्होने साधना का ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया, जिस मार्ग पर चलकर सभी व्यक्ति सुख और शांति प्राप्त कर सकते है। उनके ध्यानयोग की साधना आत्मसाधना थी, भय से पर थी, प्रलोभनो से परे और राग-द्वेष से परे थी। वे निर्जन वन में ध्यानस्थ मुद्रा में अविचल रहकर स्व की खोज करते रहे। उनके मनमें कोई भी विकल्प नहीं था। मैत्री भावना का सर्वोच्च आदर्श, जिसे पुष्पों से ही नहीं, कंटकों से भी प्यार था। सतानेवालों के प्रति भी एक सहज करूणा और कल्याण की कामना विद्यमान थी। महावीर समत्वयोग के साधकथे और वे करूणा के देवता थे। उन्होने विष को अमृत बना दिया और वैर-विरोध का शमनकर समता और शांति का मार्ग स्थापित किया। प्रस्तुत प्रबंधो का साहित्यिक परिचय महाकाव्यों की समीक्षा प्रस्तुत महाकाव्यों में कवि भगवान महावीर के गर्भ में आने से लेकर उनके परिनिर्वाण तक की विशाल आध्यात्मिक जीवन यात्रा को परंपरा के आलोक में अपनी कल्पना एवं प्रखर प्रतिमा सुंदर रीति से चित्रण करने में सफल हुए हैं। उन्होने महाकाव्यों के लक्षणों को ध्यान रखते हुए काव्य की रचना की है। प्रायः सभी प्रबंधों में महाकाव्यों के शास्त्रों के इन लक्षणों का निर्वाह किया गया है। कथानक न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा, सर्गबद्ध, नाटक की सन्धिया से संघटित, सुसंबंध, किसी महान घटना पर आधारित है। रुद्रहव हेमचंद्र के अनुसार अवान्तक कथाओं का भी समावेश हुआ है । नायक सद्वंशी क्षत्रिय या देवता होना चाहिए। यह गुण भगवान महावीर में पूर्व रूप से विद्यमान था। महाकाव्यों में वस्तु-व्यापार वर्णन पर अधिक बल दिया गया है। प्रकृति चित्रण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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