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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तीर्थंकर पार्श्वनाथ :
तीर्थंकर पार्श्वनाथ ऐतिहासिक युग पुरूष थे। यह अनेक प्रमाणों से सिद्ध हो चूका है । जैन साहित्य की नहीं, बौद्ध साहित्य भी तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता को स्वीकार करता है। भगवान का जन्म बनारस के राजा अश्वसेन और उनकी रानी वामादेवी के कुक्षिसे हुआ था। उन्होंने तीस वर्ष की अवस्था में गृह त्यागकर सम्मेदशिखर पर्वत पर तपस्या की। यह पर्वत आज तक पार्श्वनाथ पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है। पार्श्वनाथ ने केवलज्ञान प्राप्तकर ७० वर्ष तक श्रमण धर्म का प्रचार किया। पार्श्वनाथ के जीवन-प्रसंग में कमठ का महत्वपूर्ण स्थान है। इसी के कारण पार्श्वनाथ की साधना में निखार और परिष्कार आया है। क्षमा और वैर के घात प्रतिघातों का मार्मिक वर्णन हुआ है। पार्श्वनाथ क्षमा के प्रतीक और कमठ वैर का । क्षमा और वैर का द्वन्द्व अनेक जन्मों तक चला है और अन्त में वैर पर क्षमा की विजय हुई है।
सम्मेदशिखर पर्वत तीर्थंकर पार्श्वनाथ ‘हिल' के नाम से प्रसिद्ध है । जैन पुराणों के अनुसार पार्श्वनाथ का निर्वाणकाल ईस्वी. पूर्वे ७७७ ठहरता है। पार्श्वनाथ की जैन धर्म के तत्युगीन रूप पर गहरी छाप है, वे ऋषभनाथ से नेमिनाथ तक चली आती धर्म परंपरा के समवेत संस्करण हैं। उनमें तीर्थंकर ऋषभ का आकिंचन्य अपरिग्रह
और कर्मठता । नमिनाथ की अनासक्तवृत्ति एवं नेमिनाथ की करुणा प्रधान अहिंसावृत्ति सामायिक धर्मचक्र के रूप में प्रतिष्ठित हैं। पार्श्वनाथ ने अहिंसा के सुव्यवस्थित सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठि कर क्षमा की धारा प्रचलित की। भगवान महावीरः
भारत का पूर्वीय भाग मुख्य रूप से हिंसापूर्ण यज्ञादि कर्मकाण्डों का केन्द्र था। धार्मिक दासता चारों ओर अपना प्रभुत्व जमा रही थी। जन-मानस उस विकृत वातावरण से उब चूका था और वह किसी दिव्य-भव्य प्रकाश पुञ्ज अपलक प्रतीक्षा कर रहा था जो उसे धर्म का प्रशस्त एवं सही मार्गदर्शन कर सके।
ऐसे समय में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन मगध के विदेह जनपद में वैशाली के क्षत्रिय कुण्ड के अधिपति राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ भगवान महावीर का जन्म हुआ। तीर्थंकर पार्श्वनाथ के २५० वर्ष पश्चात् प्रगतिशील परंपरा के संस्थापक चौबीसवें तीर्थंकर महावीर हुए। इन्होने अपनी व्रत संबंधी प्रगतिशील क्रान्ति के द्वारा जैन धर्म को युगानुकूल रूप दिया। तीर्थंकर पार्श्वनाथ की तीर्थ परंपरा को ढहते हुए
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