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________________ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन २४९ मालिनी : कविने जन्म से पूर्व वार्तालाप का चित्रण मालिनी छन्द में काव्य में वर्णित किया है । उसमें दो नगण, मगण, और दो यगण इस प्रकार प्रत्येक चरण पन्द्रह वर्णोंका होता है - 1 जय रति-पति ! तेरी हो, तुझे सर्वदा ही कुलगुरू अबलाएँ मानती के लिये है, पर अब जिस प्राणी को सखे ! जन्म देगा, वह विजित तुझे भूमी में आ करेगा । *** द्रुतविलम्बित: वीर प्रभु का जन्म के समय की छवि का द्रुतविलम्बित छन्द में कविने काव्य में चित्रण अंकित किया है। उसमें नगण, दो भगण और रगण इस प्रकार प्रत्येक चरण में १२ होते हैं - १. २. ३. तनय हो अवतीर्ण हुई, अहो । शुभ - विदेह धराधिप-धाम में। *** कविने भगवान महावीर के शब्दों में उद्बोधन देते हुए शार्दूलविक्रीडित छन्द का सुंदर प्रयोग काव्य में किया है। यह छन्द में मगण, सगण, जगण, सगण, और गुरु इस प्रकार प्रत्येक चरण में १९ वर्ण होते हैं - दो तगण हृदय की प्रति-मूर्ति बहिर्गत । भवन की सुषमा छवि ईश की, इस में बारहवें वर्ण पर यति होती है। - भव्यों ! यह मेदिनी शिविर - सी जाना पडेगा कभी; आगे का पथ ज्ञात है न, इससे सद्बुद्धि आये न क्यों । ले लो साधन धर्म के, न तुम को व्यापे व्यथा अन्यथा, है जैनेन्द्र- पदारविन्द-तरणी संसार पाथोधि की । ३ *** "वर्द्धमान” : कवि अनूपशर्मा, सर्ग - १ पद सं. १४०, पृ. ७० वही, सर्ग - ८ पद सं. ९७, पृ. २५३ वही, पद सं. २४३, सर्ग - १७, पृ. ५८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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