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________________ २५० दोहा : इस छन्द के पहले और तीसरे चरणों में १३ मात्राएँ होती हैं तथा दूसरे और चोथे चरणों में ११ मात्राएँ। इस प्रकार प्रत्येक दल में २४ मात्राएँ रहती हैं। सम (दूसरेचौथे) चरणों के अन्त में गुरु - लघु रहना चाहिए । नजर न लग जाये कहीं, तिलक लगा दे श्याम । मुँह पर मेरी पुतलियाँ सदा श्याम सुखधाम ॥ ' *** २. ३. ४. ५. हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन ६. एक सहस वसु अधिक जे, लक्षण जिनवर देह । पृथक् पृथक् कछु वरनऊँ, आगम अर्थ सनेह ॥ *** दरशनकर सुरराज इम, सन्मति सार्थक नाम । कर्म निकन्दन वीर है, वर्धमान गुणधाम ॥ ३ *** अब सुन क्षेत्र ऋद्वि को, वरनौ शाखा दोय । प्रथम अधिन्न महानसी, क्षेत्र महालय होय । ४ *** चैत्यालय उत्कृष्ट जुत, मध्यलोक परमान । चउसय अट्ठावन प्रमिति, व्यतर अधिक बखान ॥ ५ *** प्रथम सौधर्म इन्द्र के हाथ, कलश दये दे वन सब साथ । एक सहस वसु भुजा कराय, सकल कलश ढारै हर्षाय ॥ *** " वीरायण" : कवि मित्रजी, “जन्मज्योति”, सर्ग - ४, प . १९ "वर्द्धमान" : कवि नवलशाह, नवम् अधिकार, पद सं. १५, पृ. ८७ वही, अष्टम् अधिकार, पद सं. ८१, पृ. ८२ वही, दशम् अधिकार, पद सं. २४१, पृ.१२९ " वर्द्धमान पुराण" : नवम अधिकार, पद नं. २३३, पृ. ९८ वही, अष्टम् अधिकार, श्लो. ४६, पृ. ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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