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२.
३.
४.
बालक की शोभा का वर्णन देखिए -
हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
कवीर की करूणा :
वही, सर्ग - १
अपूर्व था बालक गौर रंग का, कपोल दोनों ऋतुराज - पुष्प-से लसे खिलौने करमें सुवर्ण के, अजस्त्र - संचालित पाद-युग्म थे । १
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कवि ने भगवान महावीर का प्रतिकूल- अनुकूल उपसर्गों में भी मन की समाधि का " वंशस्थ " छन्द में साक्षात् चित्रण काव्य में चित्रित किया है ।
तुषार वर्षा-मय-शीत-काल में,
स्व- ध्यान - उष्मा - मय-योग-मग्न थे, दवाग्नि- वर्षा-मय-ग्र - ग्रीष्म-काल में स्व-ज्ञान- शैत्याश्रय-भोग-लग्न थे । ४
- १५,
सखे ! विलोके वह दूर सामने प्रचंड दावा जलता अरण्य में चलो, वहाँ के खग-जीव जन्तु को सहायता दें यदि हो सके, अभी ।
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मनुष्य, पक्षी, कृमि, जीव, जन्तु की, सदैव रक्षा करना स्वधर्म है,
अतः चलो कानन में विलोक लें कि कौन-सी व्याधि प्रवर्द्धमान है । ३
"वर्द्धमान" : कवि अनूपशर्मा, सर्ग-८, श्लो. ६७, पृ. २४५
वही, सर्ग ९, श्लो. १७, पृ. २६१
वही, श्लो. १९, पृ. २६१
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श्लो. ७५, पृ. ४५७
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