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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
कवि ने काव्य में भगवान के जाते समय मार्ग में खड़ी हुई यशोदा का मनोहारिणी अद्भूत चित्रण काव्य में चित्रित किया है, जो उनको देखकर संदेह होना स्वाभाविक है
खड़ी यशोदा राह में, या बिजली की मूर्ति या पथ में सहसा प्रकट, हर अभाव की पूर्ति ॥
*** भगवान महावीर वन में प्रस्थान करते समय उनका अलौकित रुप-सौन्दर्य देखकर वन के प्राणियों के मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न प्रकार का संदेह होना, उसी का सजीव वर्णन कवि ने काव्य में अंकित किया है -
ऋतुराज है या ताज है, ऋतुराज है या साज है। ऋतुराज अद्भूत राज सुख, ऋतुपति प्रकृति का राज है।
___ *** स्वर्णिम वसन्ती फूल है, या भूमि पर उतारे उगे ये रुप के शिशु खिलते या खगों ने मोती चुगे ?
*** जेवर लड़ी निधियाँ पड़ी, या सिद्धियों की भक्ति हैं। उपलब्धियाँ बिखरी पड़ी, या नौ रसों की शक्ति है।
___ *** "वीरायण" : कवि मित्रजी, “वनपथ', सर्ग-१०, पृ.२५५ वही, "दिव्यदर्शन", सर्ग-११, पृ.२७७ वही वही, पृ.२७८
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