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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन आँखों में जिसके हो आँसु, बैठी-बैठी वह रोती हो। कुछ बीच-बीच में हँस भी दे, फिर उफन उफन कर रोती हो।
राजा का चिंतनः
पक्षी-पक्षिण-मोर-मोरनी, फल कपोत के नव जोड़े। सरस प्रेम में मग्न सभी पर, राजपुरूष थे मुख मोड़े।
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संदेह अलंकारः रानी त्रिशला की केशरानी की सौन्दर्यता का वर्णन कवि शर्माजी ने किया है -
कैसी थी वह चिकुर राशि या बदली उमग थी सावन की। नीलझील सी आँख थी या दो पंखुरी पंकज पावन की।
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राजासिद्धार्थ का चिंतनः
उर्द्ध गगन में दृष्टि कि जैसे, कोई उन्हें बुलाता हो। या कि तेज का अंश स्वर्ग से, धरती पर आता हो।'
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यशोदा का सौन्दर्य :
चिकुर राशी थी या सावन की नीर भर घनश्याम घटा थी। रत्नराजि से सज्जित वेणी थी या नभ संरि शुभ्र छटा थी। वह ललाट या प्रेमी उरका चरम साधना का उत्कर्ष । भ्रकुटिवक्रता मघवा धनुका घोषित करती थी अपकर्ष ॥५
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"श्रमण भगवान महावीर" : कवि योधेयजी, सोपान-२, पृ.७७ "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, “जन्मधाम", सर्ग-२, पृ.१९ वही, पृ.१८ वही वही, “परिणयसूत्र", सर्ग-६, पृ.७६
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