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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन
नभ नदियों ने पगों में,
लडियाँ धरी उतार
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चरण पकड़कर स्वामी के वह सिसक रही थी, मोती की लडियाँ नयनों से बरस रही थी |
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२. ३.
४.
नयन के ऐसे मुक्ता कोष धरा पर बिखरे जैसे ओस
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पृथ्वी पीड़ा सर्ग में कवि ने पृथ्वी की व्यथा को अतिशयोक्ति अलंकार द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति सुंदर ढंग से की है, -
५.
पृथ्वी की पीड़ा को कवि ने, कविताओं से धैर्य दिया ।
૪
फूलों पर गिरे आँसूओं को, कुछ किरणों ने पहचान लिया ॥
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स्वभावोक्ति अलंकार :
भगवान महावीर काव्य में वीर की बाल प्रकृति का स्वभावोक्ति अलंकार द्वारा कवि स्वाभाविक वर्णन किया है -
बालक, सौम्य, अचञ्चल, शांत सिन्धु-सा तरल और गम्भीर । निरन्तर माँ को रहा निहार रही हो जो उद्वन अधीर "
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"वीरायण" : कवि मित्रजी, “दिव्यदर्शन" सर्ग - ११, पृ. २७४ 'श्रमण भगवान महावीर” कवि योधेयजी, सोपान-८, पृ. ३२६ वही, सोपान - ७, पृ. ३१०
“वीरायण” : कवि मित्रजी, "पृथ्वी पीड़ा", सर्ग - २, पृ. ६७
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'श्रमण भगवान महावीर” कवि योधेयजी, सोपान - ७, पृ. २६४
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