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________________ २१९ हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन जन्म से पूर्व का वातावरणः तज शोक अशोको के तरुवर, सुमनावलि पाकर झूम रहे। झुक शरणागत लतिकाओके, मुख मण्डल सहसा चूम रहे। जन्म के समय का: मेरू शिखरतै सोहे पंत, पंचम सागर के पर्यन्त । सकल सुरासुर तह तैं ढाहि, एक एक छोडयो दधिघाट। सेनी बांधी देवन सबै, हथाहत्थ कलशा लै तबै सो क्षीरोदधि जल भर लाय, जन्मासेक करा मन लाय ॥२ *** पुष्प बरसे ते रंग बिरंगे गंधो से सुरभित आकाश धरती पर भी फूल उठे, अरविन्द कुन्द पाटल पलाश *** बजे नगाडे-शंक, अनेकों, ढोल-झांझ औ तासा झर-झर झरे खुशी से लोचन रहा न कोई प्यासा॥ वनगमन: भगवान के वनगमन के समय प्रकृति की जैसे उदात हो गई। श्रद्धासे विश्व भी फूल वर्षा ने लगे “परमज्योतिमहावीर' : कवि सुधेशजी, सर्ग-६, पृ.१८४ "वर्द्धमान पुराण' : कवि नवलशाह, अष्टम् अधिकार, पद. सं. -४४-४५, पृ.८० "भगवान महावीर" : कवि शर्माजी, "दिव्य शक्ति अवतरण", सर्ग-३, पृ.३४ "जयमहावीर' : कवि माणकचन्द, सर्ग-४, पृ.४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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