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________________ २२० हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन तत्काल सभी ने भाव सहित, निजभाल सहर्ष, झुकाये थे। हो नम्र विटपशाखाओने, श्रद्धा से फूल चढाये थे। साधनावस्थाः भगवान की साधनावस्था के समय प्रकृति के चारों और शीतलता व शांति वातावरण का चित्रण देखिए - उस निर्जन वन में एकाकीथे, फिर भी भय का नाम न था। बहता था शीत पवन, फिर भी विचलित होता परिणाम न था। दीक्षोत्सवः कवि ने दीक्षा के समय का सजीव चित्रण काव्य में उभारा है। पुष्पों की वर्षा हो रही है, पक्षिओं के गीत की मंगल ध्वनि सुनाई दे रही है। हृदय को सुख देनेवाले वांजित्रों की मधुर ध्वनि पूँजित हो रही है देव-यूथ ने गही पालकी, श्रद्धा सहित बढे आगे। सुमन बरसाते थे नव नव वर, कंज कोष में अलिदल जागे॥ विविध विहंग गीत गा गाकर, मंगल ध्वनि गुंजित करते। वाद्यवृन्द के तुमुल घोष भी, उरमें अभिनव सुख भरते॥ *** केवलज्ञानोत्सवः ___ इन्द्र-इन्द्राणी, देवगण आदि के द्वारा भगवान का केवलज्ञानोत्सव का शब्द चित्र कवियों ने काव्यों में प्रस्तुत किया है - कल्प लोक अनहद एव भयौ, घंटा शब्द मनोहर ठयौं। होय मधुर ध्वनि अति गंभीर, मनौ सिन्धु यह गर्जर नीर ।। . *** “परमज्योति महावीर" : कवि सुधेशजी, सर्ग-१३, पृ.३५९ वही, सर्ग-१४, पृ.३६६ "भगवान महावीर" कवि शर्माजी, “सन्यस्त संकल्प", सर्ग-१०, पृ.१२२ “वर्धमान पुराण' : कवि नवलशाह, एकादश अधिकार, पद सं. १३, पृ.१४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002766
Book TitleMahavira Prabandh Kavyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyagunashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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