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हिन्दी के महावीर प्रबन्ध काव्यों का आलोचनात्मक अध्ययन कवि ने सुमेरू पर्वत पर भगवान को जन्माभिषेक के लिए ले जाने का सजीव चित्रण किया है। जो "लकदक" शब्द का प्रयोग सहज रुप में हुआ है वह फारसी है।
क्या तुम में रबकी ताकत है, क्या तुम में सबकी ताकत है ? हर और दिखाई तुम देते, वक्तव्य झाड़ते आफत है।'
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फारसी रब और आफत तथा अरबी ताकत शब्द का प्रयोग करते अपने भावों को समाज के सामने सुंदर ढंग से अभिव्यक्त किया है।
रहँटू बट्टा गोली कंचा। सीटी फिट-फिट और तमंचा।
*** इस पद में कवि ने फिट-फिट और तमंचा शब्द द्वारा शैशवलीला का मनोहारी चित्रण किया है।
उपर्युक्त पदों में फारसी, अरबी और तुर्की भाषा के शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक रुपसे हुआ है इसके अलावा भी काव्यों में विदेशी शब्दों स्थान-स्थान पर देखने को मिलता है। पारसीक, बरबस, किताबी, इमान, संलग्न, इन्सान, तख्त, तबाही, जहान, टैंको आदि। चित्रात्मकता या सजीवताः
शब्दचित्र अर्थात् शब्द द्वारा ऐसा सजीव वर्णन करना जिसके अमूर्त भी मूर्त हो उटे । पाठक के सामने एक चित्र-सा उभरने लगे। यह चित्रात्मकता प्रस्तुत करने की क्षमता का आधार कवि की काव्यशक्ति का, भाषा के शब्द चयन व प्रयोग पर आधारित होता है। कवि इन्हीं शब्द चित्रों से विविध रसों का प्रवाह प्रवाहित करता है। भावों का निर्माण करता है । मौन भाषा भी मुखरित हो उठती है।
जन्मोत्सव का शब्द चित्र देखिए । चराचर में प्रसन्नता की लहर दौड गई। सभी जन्मोत्सव मनाने के लिए बावले हो उठे -
“वीरायण", : कवि मित्रजी, उद्धार, सर्ग-१३, पृ.३२२ “भगवान महावीर' : कवि शर्माजी, "शैशवलीला", सर्ग-४, पृ.४९
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